घर के मंदिर मे विराजित किए गए देवी-देवताओं का आदर घर के मुखिया की तरह करना चाहिए. मंदिर में देवी-देवताओं की पूजा के कुछ नियम बताए गए हैं. इन नियमों का पालन करने से देवता प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं.
भगवान की उपासना करते समय न चाहते हुए भी कुछ गलतियां हो जाती हैं, या यूं कहा जाए कि ध्यान न देने से कुछ लापरवाही हो जाती है जिसके कारण ईश्वर का निरादर हो जाता है. प्रार्थना करने के पहले देवताओं का आवाहन किया जाता है, उनके आने के बाद उचित आसन, चरण धोने आदि करने के बाद ही प्रार्थना की जाती है. सीधे प्रार्थना करना उचित नहीं होता है।
जैसे आप अपने घर में किसी अति विशिष्ट मेहमान को बुलाते हैं और उनके आने पर आदरपूर्वक द्वार खोल कर उनसे बैठने का आग्रह करते हैं. नाश्ता पानी लगाने के बाद ही हम उनसे अपनी समस्या शेयर करते हैं. यदि मेहमान के आने के बाद बिना उनकी आवभगत किए सीधे अपनी मांग रख दी जाए तो शायद उन्हें यह व्यवहार उचित नहीं लगेगा. सही तरीका तो यही है कि हम उन्हें आदर के साथ बुलाएं और उनका सम्मान करने के बाद अपनी फीलिंग व्यक्त करें. ठीक यही बात ईश्वर के लिए भी लागू होती है.
घर के पूजास्थल में जो भगवान विराजित हैं, वह केवल मूर्ति मात्र नहीं हैं बल्कि सजीव हैं और हम लोग उसी भाव से उनकी उपासना करते हैं. शायद यही कारण है कि जब सर्दियों का समय आता है तो उनको गर्म कपड़े पहनाते हैं, वहीं गर्मी आने पर मंदिर में पंखा भी लगाते हैं.
हमारा व्यवहार बताता है कि घर में विराजित देवता हमारे वीवीआइपी हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी सुविधानुसार कभी संवेदनशील हो जाते हैं तो कभी संवेदनशून्य.
जिस तरह मंदिरोँ में नित्य प्रति सफाई होती है, ठीक उसी तरह घर के पूजास्थल की साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए. कई बार देखा जाता है कि पूजाघर में धूल जमी हुई है, पुराने फूल रखे हुए हैं. यह बात ठीक नहीं है. पूजास्थल है तो उसकी नित्य प्रति सफाई होनी चाहिए, भले ही आप बहुत अधिक व्यस्त हों. पूजा स्थल में जो धातु की मूर्तियां हैं, उनको नित्य स्नान कराने, वस्त्र पहनाने और चंदन तथा पुष्प आदि अर्पित करने का नियम होना चाहिए, जैसा रोज हम लोग अपने लिए करते हैं. लोग एक गलती और करते हैं, स्नान करने के बाद कपड़े पहनने के साथ-साथ मंत्र जाप या पाठ आदि करने लगते हैं. यह ठीक नहीं है. पूजास्थल में जाने पर सबसे पहले अपने प्रभु को सुसज्जित करना है, धातु की मूर्ति के स्थान पर यदि पत्थर की मूर्ति या फोटो है तो सबसे पहले एक दिन पहले लगाए गए टीके को हल्के गीले कपड़े से साफ करें, फिर नया तिलक लगाएं और पुराने पुष्प हटा कर नए पुष्प चढाएं, दीपक जलाएं तब उपासना प्रारंभ करने की स्थिति बनेगी.
सिर पर कपड़ा रखने को कुछ लोग फिजूल मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है, सिर पर रुमाल, टोपी या साफा पहनना तथा स्त्रियों द्वारा पल्लू रखना दूसरों को सम्मान देने का प्रतीक है. ऐसा करके हम भगवान के प्रति अपना आदर भाव दिखाते हैं.
घर के हर कमरे में भगवान की फोटो रखना भी बहुत अच्छी बात नहीं है. किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि आप बहुत बड़े भक्त हैं. ऐसा नहीं है कि आप घर में जितनी ज्यादा भगवान की फोटो रख लेंगे, भगवान उतनी ही जल्दी प्रसन्न हो जाएंगे. भगवान का चित्र या मूर्ति रखने का अर्थ है कि आपने बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ली है. उनके आदर सत्कार में कोई चूक नहीं होनी चाहिए. मूर्तियों को डेकोरेशन की वस्तु न बनाएं, भक्ति और भगवान बहुत आंतरिक विषय है. भगवान डेकोरेशन की नहीं डिवोशन की चीज हैं.