भारतीय शेयर बाजार (Stock Market) अपने रिकॉर्ड हाई से करीब 15 फीसदी गिर चुका है. पिछले लंबे समय से बाजार में उथल-पुथल जारी है. यूक्रेन संकट, बढ़ती महंगाई और केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में की जा रही बढ़ोतरी को बाजार के जानकार इस गिरावट का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
पिछले 40 वर्षों से शेयर बाजार में सक्रिय दिग्गज निवेशक शरद शाह (Sharad Shah) इन कारणों के अलावा शेयर बाजार की गिरावट का एक और कारण भी मानते हैं. वो है, कंपनियों की ओवर वैल्यूएशन. शाह का कहना है कि बाजार में गिरावट अभी थमने वाली नहीं है. बाजार आगे और गोता लगा सकता है. मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों पर मंदी की सबसे ज्यादा मार पड़ेगी.
शरद शाह ने कहा कि बाजार में बहुत से ऐसे कारण मौजूद हैं जो आगे और गिरावट की तरफ इशारा कर रहे हैं. कंपनियों के फंडामेंटल की तुलना में शेयरों की कीमतों का बहुत अधिक होना, कमजोर रुपया, कंपनियों की कमजोर कमाई और अमेरिकी मार्केट में जारी भारी बिकवाली भारतीय बाजार पर आगे भी दबाव बनाए रखेगी.
शाह का कहना है कि जून या जुलाई में शेयर बाजार में और करेक्शन आ सकता है. यह करेक्शन बहुत घातक हो सकता है. शाह का कहना है कि आमतौर पर शेयर बाजार में गिरावट का दौर लंबा नहीं होता. यह कुछ समय के लिए हो होता है और जल्दी बीत जाता है. लेकिन, अब भारतीय शेयर बाजार का आकार बहुत बड़ा हो गया है. इसलिए अब अगर करेक्शन होता है तो उससे उबरने में इसे ज्यादा वक्त लगेगा.
शरद शाह का कहना है कि नैस्डेक में भारी गिरावट आई है, परंतु भारत में टेक्नोलॉजी शेयरों में गिरावट नहीं आई है. ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता जो भारतीय टेक स्टॉक्स को गति दे रहा है. भारतीय आईटी कंपनियों की वैल्यूएशन बहुत ज्यादा आंकी जा रही है. यह बहुत गलत है. भरत शाह का कहना है कि कंपनी हो या मार्केट, उसकी ओवर वैल्यूएशन ज्यादा दिन नहीं टिकती और यह गुब्बारा एक दिन फूट जाता है. जब ऐसा होता है तो यह भूचाल लाता है.
शरद शाह का कहना है कि इन्फोसिस, डिक्सन टेक्नोलॉजीज, टेक महिंद्रा और इन्फो एज के शेयरों में गिरावट आ सकती है. एफएमसीजी कंपनियों के बारे में शाह का कहना है कि एफएमसीजी सेक्टर ने हमेशा ही निवेशकों को मुनाफा दिया है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस सेक्टर की सभी कंपनियां कमाई वाली हैं. इस सेक्टर में भी कुछ कंपनियां ऐसी हैं, जिनके फंडामेंटल कमजोर हैं.
शरद शाह का कहना है 2008 और आज के शेयर बाजार की तुलना नहीं की जा सकती. तब शेयर बाजार का आकार बहुत छोटा था. आज इसका मार्केट कैप वास्तविक अर्थव्यवस्था से 90 फीसदी ज्यादा है. यह बहुत ज्यादा है. मार्केट कैपिटलाइजेशन जीडीपी का 60 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. शरद शाह का कहना है कि अगर अब मार्केट क्रैश होता है तो इसका प्रभाव 2008 की तुलना में बहुत गहरा होगा. 2008 की तुलना में आज बहुत ज्यादा लोग स्टॉक मार्केट में पैसा लगा रहे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
शरद शाह का कहना है कि रिटेल इनवेस्टर्स कुछ हद तक ही बाजार को थाम सकते हैं. अगर फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स ज्यादा बिकवाली करेंगे तो उसे रिटेल निवेशक नहीं संभाल पाएंगे. जैसे ही शेयर बाजार गिरना शुरू होगा, रिटेल निवेशक इससे दूरी बना लेंगे.