पश्चिमी अफ्रीका के देश बुर्किना फासो की राजधानी औगाडोउगोउ में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने फ्रांसीसी दूतावास पर हमला कर दिया. देश में तख्तापलट करने वाले नए नेता कैप्टन इब्राहिम त्राओरे के समर्थकों ने फ्रांस पर सत्ता से बेदखल किए अंतरिम राष्ट्रपति लेफ्टिनेंट कर्नल पॉल हेनरी सैंडाओगो डामिबा को पनाह देने का आरोप लगाया है. बहरहाल, फ्रांसीसी प्राधिकारियों ने इस आरोप को खारिज कर दिया है. देश में सैनिकों ने शुक्रवार देर रात सैन्य तख्तापलट कर राष्ट्रपति बने डामिबा को महज नौ महीने बाद ही सत्ता से बेदखल करने की घोषणा की. डामिबा पर इस्लामिक चरमपंथियों की बढ़ती हिंसा से निपटने में नाकाम रहने का आरोप है.
दूतावास परिसर में दिखीं आग की लपटें
एक जुंटा प्रवक्ता की टिप्पणियों ने शनिवार को औगाडोउगोउ में गुस्सा भड़काने का काम किया. सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में निवासियों को फ्रांसीसी दूतावास के पास जलती हुई मशालें लेकर देखा गया और अन्य तस्वीरों में परिसर में आग की लपटें उठती हुई देखी गईं.
बुर्किना फासो के दूसरे सबसे बड़े शहर बोबो दियोलासो में गुस्साई भीड़ ने एक फ्रांसीसी संस्थान में भी तोड़फोड़ की. डामिबा का अभी कुछ अता-पता नहीं चला है. बहरहाल, फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने कड़े शब्दों में एक बयान जारी कर कहा, 'हम बुर्किना फासो में हुए घटनाक्रम में कोई हाथ होने से औपचारिक रूप से इनकार करते हैं. जिस अड्डे पर फ्रांसीसी सेना है, वहां कभी पॉल हेनरी सैंडाओगो डामिबा नहीं रहे.'
फ्रांस ने दिया ये बयान
फ्रांस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता एनी क्लेयर लेजेंद्रे ने फ्रांस-24 से कहा कि औगाडोउगोउ में 'भ्रम की स्थिति' है और उन्होंने फ्रांसीसी नागरिकों से घर पर ही रहने का अनुरोध किया. त्राओरे (34) ने कहा कि वह और उनके लोग डामिबा को नुकसान पहुंचाना नहीं चाहते. डामिबा ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है.
'...शायद उनकी मौत हो जाती'
त्राओरे ने वॉयस ऑफ अमेरिका से कहा, 'अगर हम चाहते तो हम पांच मिनट की लड़ाई के भीतर उन्हें कब्जे में ले लेते और शायद उनकी मौत हो जाती. लेकिन हम यह विनाश नहीं चाहते. हम उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते क्योंकि हमें उनसे कोई निजी समस्या नहीं है. हम बुर्किना फासो के लिए लड़ रहे हैं.'
अनिश्चितता की स्थिति के बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने डामिबा को सत्ता से बेदखल करने की निंदा की. डामिबा और उनके सहयोगियों ने महज नौ महीने पहले ही लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति को सत्ता से बाहर कर दिया था और वह देश को अधिक सुरक्षित बनाने का वादा करके सत्ता में आए थे. हालांकि, हिंसा का दौर जारी रहा और हाल के महीनों में उनके नेतृत्व को लेकर असंतोष की आवाज बुलंद होने लगी थीं.