चीन भले ही सस्ते कर्ज के झांसे में फंसाकर विभिन्न छोटे देशों को काबू करने की नीति पर काम कर रहा है लेकिन, एक हकीकत ये भी है कि उसका अपना घर काफी खराब हालत में है। चीन की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के बाद से उबर नहीं पाई है। इतना ही नहीं चीन में प्रापर्टी की कीमतों में आई जबरदस्त गिरावट वहां की खराब आर्थिक हालत का संकेत दे रही है। चीन में बीते कुछ समय में महंगाई के अलावा बेरोजगारी भी बढ़ी है और प्रतिव्यक्ति आय कम हुई है। इसको देखते हुए चीन ने ब्याज दरों में कटौती की है।
चीन के सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि देश की आर्थिक दशा सुधारने के उसके सभी प्रयास विफल हुए हैं। वो मौजूदा वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की दर के 5.5 फीसद के लक्ष्य को पाने में भी नाकाम रहा है। चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए मुद्रा के प्रवाह को बढ़ाना बेहद जरूरी है। उन्होंने देश की खराब हालत को देखते हुए तत्काल कदम उठाने को कहा है।
चीन कीअर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले जानकार जैकब गुंटर का कहना है कि कोरोना को लेकर अन्य देशों ने जो पालिसी बनाई और इसको कंट्रोल किया वो काम चीन ने नहीं किया। चीन ने कोरोना के साथ जीना नहीं सीखा। यही वजह है कि कोरोना महामारी आज भी आर्थिक अराजकता फैलाने का बड़ा कारण बन गया है। इतना ही नहीं चीन ने कोरोना से लड़ाई में कारगर MrNA टीके का आयात नहीं किया। इसकी वजह से चीन के लोगों में दूसरे देशों के मुकाबले इम्यूनिटी कम बन सकी है। विश्व के दूसरे बड़े जानकार भी मानते हैं कि चीन में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और टीके को लेकर हिचकिचाहट कहीं अधिक है।
जानकारों का ये भी कहना है कि चीन अपनी आर्थिक हालत को सुधारने के लिए दुनिया के दूसरे देशों से अलग कदम उठा रहा है। विश्व में जहां बैंकों ने ब्याज की दरें बढ़ाई हैं, वहीं चीन ने कम किए हैं। चीन की जीरो कोविड नीति की वजह से लोगों के मन में काम धंधे कभी भी ठप होने का डर बैठा हुआ है।