Breaking News
युवती ने शादी के वक्त पति से छुपाई ऐसी बात, पता चलते ही पैरों तले खिसकी जमीन, परिवार सदमे में Best Recharge Plans : Jio ने 84 दिन वाले प्लान से BSNL और Airtel के होश उड़ा दिए, करोड़ों यूजर्स की हो गई मौज Cooking Oil Price Reduce : मूंगफली तेल हुआ सस्ता, सोया तेल की कीमतों मे आई 20-25 रुपये तक की भारी गिरावट PM Kisan Yojana : सरकार किसानों के खाते में भेज रही 15 लाख रुपये, फटाफट आप भी उठाएं लाभ Youtube से पैसे कमाने हुए मुश्किल : Youtuber बनने की सोच रहे हैं तो अभी जान लें ये काम की बात वरना बाद में पड़ सकता है पछताना
Friday, 13 December 2024

Political News

बीजेपी ने बनाया मूड 2024 के चुनाव में इसे बनाया सबसे बड़ा एजेंडा

21 February 2023 11:30 AM Mega Daily News
बीजेपी,नागरिक,संहिता,विरोध,कानून,हिंदू,मुद्दा,सरकार,सिविल,संविधान,यूनिफॉर्म,समुदाय,अनुच्छेद,शासित,गृहमंत्री,bjp,created,mood,made,biggest,agenda,2024,elections

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने साल 2024 के आम चुनाव का सबसे बड़ा एजेंडा सेट कर दिया है. हो सकता है कि आपके दिमाग में वो मुद्दा राम मंदिर का हो, जो अगले साल जनवरी में दर्शनों के लिए खोल दिया जाएगा. लेकिन, राम मंदिर नहीं, गृहमंत्री अमित शाह ने Uniform Civil Code यानी समान नागरिक संहिता को लागू करना, अपना सबसे बड़ा मुद्दा बताया है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जनसंघ के जमाने से ही भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से जुड़े 3 सबसे बड़े मुद्दे रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी के 3 सबसे बड़े मुद्दे

पहला मुद्दा- राम मंदिर निर्माण. इसके लिए बीजेपी ने एक लंबी लड़ाई लड़ी. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और यहीं से राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया. एक तरह से बीजेपी को अपने पहली वैचारिक मुद्दे पर जीत हासिल की.

दूसरा मुद्दा- इसी तरह से बीजेपी के लिए दूसरा मुद्दा कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया जाना था. जनसंघ के जमाने से ही इसका विरोध लगातार होता आया और आखिरकार 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया.

तीसरा मुद्दा- बीजेपी के लिए तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा देश में समान नागरिक संहिता लागू होना है. यानी कुछ ऐसे नियमों का बनाया जाना, जो हर धर्म, वर्ग और जाति पर समान रूप से लागू हो. इस दिशा में अब बीजेपी ने काम करना शुरू कर दिया है.

अमित शाह ने अब खुलकर कह दी ये बात

गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने इसको लेकर इशारों-इशारों में तो कई बार कहा है, लेकिन पहली बार शाह ने कोल्हापुर में एक मंच से ये कह दिया कि देश में बीजेपी शासित राज्य UCC की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. अमित शाह का ये कहना, देश के कट्टरपंथियों और UCC का विरोध करने वालों को मिर्ची की तरह लगा है. अमित शाह ने डंके की चोट पर कहा कि जिन मुद्दों को लेकर जनता से वादे किए, वो वादे पूरे किए गए. अनुच्छेद 370 हटाना या ट्रिपल तलाक खत्म करना जैसे फैसलों पर सरकार को बहुत विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन ये फैसले लिए गए. अब यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की बात की जा रही है. अमित शाह भी दावा कर रहे हैं कि बीजेपी शासित राज्य इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. तो माना जा रहा है कि वर्ष 2024 के आम चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा यही रहने वाला है.

UCC को लेकर BJP पहले ही ले चुकी है कई फैसले

अगर हम देखें तो UCC को लेकर बीजेपी पहले से ही कई फैसले ले चुकी है. इसमें ट्रिपल तलाक एक बड़ा मुद्दा रहा, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को मौखिक रूप से तीन बार तलाक बोल देने से तलाक नहीं माना जा रहा है. पहले ऐसा नहीं था. इस कदम को UCC के साथ जोड़कर देखा जा सकता है, क्योंकि तलाक के मामले में अब सभी धर्म और जातियों के लिए एक तरह का कानून है. इसी तरह से बीजेपी ने शादी की उम्र को लेकर भी एक ऐसा फैसला लिया, जिसको UCC के प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा है. बीजेपी सरकार ने शादी की उम्र को सभी धर्मों के लड़के-लड़कियों को एक समान यानी 21 वर्ष कर दी है. पहले ऐसा नहीं था. तो एक तरह से UCC बनाना और लागू करने से पहले प्रयोग के तौर पर कुछ नियमों को लागू कर दिया गया है.

बीजेपी शासित कई राज्यों ने उठाए UCC को लेकर कदम

अमित शाह ने UCC का मुद्दा यूं ही नहीं उठाया है, बीजेपी शासित कई राज्यों ने UCC को लेकर कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जिसकी वजह से UCC का विरोध करने वालों को अमित शाह की बातों डर से लगने लगा है. समान नागरिक संहिता को लेकर ज्यादातर बीजेपी शासित राज्यों ने UCC लागू करने को लेकर गंभीरता दिखाई है. जैसे- उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए एक समिति का गठन किया है. ये समिति प्रदेशभर के लोगों से UCC लागू करने को लेकर सुझाव ले रही है. गुजरात सरकार ने भी समान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर एक समिति बनाई है। ये समिति भी इसको लेकर स्टडी कर रही है. उत्तर प्रदेश, असम, कर्नाटक और हरियाणा की बीजेपी सरकारों ने भी अपने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर कदम उठाए हैं. पिछले साल हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने भी राज्य में UCC लागू करने की बात कही थी. एक तरह से देखा जाए तो समान नागरिक संहिता, धीरे-धीरे, अगले चुनाव में केंद्र सरकार का मुख्य चुनावी मुद्दा हो सकता है. यही वजह है कि समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले लोग परेशान हैं.

संविधान भी कहता है- किसी से नहीं किया जाना चाहिए भेदभाव

देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो विरोध के नाम पर देश के संविधान की बात करते हैं. समान नागरिक संहिता का विरोध भी ये लोग संविधान के नाम पर करने की बात कहते हैं. तो यहां आपको और UCC का विरोध करने वालों को संविधान के अनुच्छेद 15 के बारे में बताना चाहते हैं. संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि- देश में किसी के भी साथ धर्म, जाति, नस्ल,लिंग और जन्मस्थान के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए. संविधान की ये धारा बताती है कि देश में बनने वाला कोई भी कानून देश के हर नागरिक पर समान रूप से लागू होना चाहिए, वो किसी धर्म या जाति में भेदभाव करने वाला नहीं होना चाहिए. समान नागरिक संहिता में भी कुछ ऐसे नियम होंगे जो हर धर्म,जाति और वर्ग पर एक समान लागू होंगे.

UCC आने के बाद क्या होगा सुधार

यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ ही है, कि ये सभी धार्मिक समुदाय पर लागू होने वाला 'एक देश एक नियम' वाला कानून होगा. सामान्य तौर पर ये ऐसे नियम होंगे, जिसमें शादी, तलाक, जमीन जायदाद के हिस्से जैसे मुद्दों पर एक जैसा नियम पूरे देश पर लागू होगा. फिर चाहे व्यक्ति किसी भी जाति या धर्म से जुड़ा हो. इसके आने के बाद माना जा रहा है कि भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा. कुछ समुदाय के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं. UCC के लागू होने के बाद शादी, पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने से संबंधित मुद्दों पर एक जैसे नियम लागू होंगे.

ब्रिटिश हुकूमत के दौर से हो रही है UCC की मांग

ऐसा नहीं है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने का मामला बीजेपी सरकार उठा रही है. समान नागरिक संहिता बनाए जाने की मांग ब्रिटिश हुकूमत के दौर से हो रही है. ब्रिटिश काल में यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा सबसे पहले उठा था. वर्ष 1835 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान एक रिपोर्ट पेश की गई थी. इस रिपोर्ट में अपराध और सबूत को लेकर देशभर में एक  जैसा कानून बनाने की बात कही गई थी. वर्ष 1840 में इस कानून को लागू कर दिया गया, लेकिन हिंदुओं और मुस्लिमों के पर्सनल लॉ को इससे अलग रखा गया. यहीं से यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग उठने लगी थी.

साल 1941 में  बीएन राव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई, इस कमेट में हिंदू समुदाय के लिए समान नागरिक संहिता बनाने की बात कही गई, वर्ष 1948 में पहली बार संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश हुआ. 'हिंदू कोड बिल' का मकसद हिंदू महिलाओं को बाल विवाह, सती प्रथा, घूंघट प्रथा जैसे गलत रिवाजों से बचाना था. यहां गौर करने वाली बात ये है कि 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' लाने के नाम पर 'हिंदू कोड बिल' लाया गया, जिसमें हिंदू समुदाय के लिए पूरे देश में एक समान नियम बनाया गया, यहां कहीं भी मुस्लिम कोड बिल या देश के हर नागरिक पर लागू होने वाला नियम नहीं लाया गया. उस वक्त ये माना गया कि बंटवारे के बाद जो मुस्लिम समुदाय भारत में रुका था, उनमें असुरक्षा का भाव था. उन्हें संतुष्ट करने के नाम पर ही यूनिफॉर्म सिविल कोड के बजाए हिंदू कोड बिल लाया गया.

यही वजह रही कि तब जनसंघ के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी और करपात्री महाराज समेत कई नेताओं ने 'हिंदू कोड बिल' का विरोध किया. विरोध की वजह से उस वक्त इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया. हालांकि 10 अगस्त 1951 को भीमराव अंबेडकर ने एक पत्र लिखकर जवाहर लाल नेहरू पर दबाव बनाया तो वो तैयार हो गए. राजेंद्र प्रसाद समेत पार्टी के कई सांसदों ने उनका विरोध किया था. इसके बाद वर्ष 1955 और 1956 में जवाहर लाल नेहरू ने इस कानून को 4 हिस्सों में बांटकर संसद में पास करवाया.

जो 4 कानून बने वो थे

- हिंदू मैरिज एक्ट 1955

- हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956

- हिंदू एडॉप्शन एंट मेंटेनेंस एक्ट 1956

- हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956

यहां पर थक हार कर नेहरू सरकार ने देश के हर धर्म और जाति पर लागू होने वाला समान कानून नहीं बनाया, बल्कि हिंदू समुदाय के लिए अलग-अलग तरह के चार कानून बना दिया. जबकि होना यही चाहिए था कि देश में जब कोई कानून बन रहा है तो वो हर तरह से सभी धर्म और जाति पर समान रूप से लागू होना चाहिए.

whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
Latest News