सियासत में ये तस्वीरें आपने अक्सर देखी होंगी। एमपी की सियासत में आदिवासी वोटर वो ताकत है ।जो अगर रूठ जाए तो फिर सत्ता की सीढ़ी चढ़ना मुश्किल है और ये बार-बार साबित भी हुआ है। जब तक आदिवासी वोट साथ रहा तब तक कांग्रेस सत्ता में रही और जब बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई तो ट्राइबल ताकत के दम पर ही प्रदेश के इस बड़े वोट बैंक ने 2018 की तरह ही बंपर वोटिंग करते हुए बड़ा मैसेज दिया।
MP की कुल 47 आदिवासी सीटों में से कई इलाकों में तो 85 से 90 प्रतिशत तक वोटिंग हुई जिसके बाद आदिवासी पर दावा सियासी हो रहा है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इसे अपने पक्ष में बता रहे हैं।
मप्र आदिवासी समाज की बीजेपी पर विश्वसनीयता बढ़ी है, साथ ही बिरसा मुंडा जी की जंयती पर माननीय प्रधानमंत्री जी आए थे। उन्होंने जो 15 नवंबर को कार्यक्रम किया। इस नाते से लगा आदिवासी समाज को हमारे जो महानायक हैं जिस पार्टी ने इतनी ऊंची सोच रखी साथ ही हमको सम्मान दिया।
निश्चित रुप से एक बड़ा वोट जो निर्णायक वोट न होकर एक बड़े के साथ बीजेपी के पक्ष में होगा। –भगवानदास सबनानी-प्रदेश महामंत्री बीजेपी
आदिवासी विधानसभा क्षेत्र में जो 47 विधानसभा क्षेत्र हैं। बहुत अच्छे वोट पड़े हैं। साफ तौर है कहीं-कहीं न भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ गुस्सा था कि भाजपा के शासनकाल में उनके साथ अन्याय अत्याचार हुए हैं। 10-10 फीट के गढ्ढे में मार दफानाएं गए हैं।
लोगों के साथ बलात्कार हुए, ट्रके पीछे बांधकर खींचा गया है। लोगों के सिर पर पेशाब तक किया गया है। ये सारी बड़ी घटनाएं आदिवासी समुदाय के साथ हुईं हैं। इनके सबके लिए बीजेपी के खिलाफ वोटिंग हुई हैं। -जेपी धनोपिया वरिष्ठ कांग्रेस नेता
मालवा-निमाड़ से लेकर विंध्य महाकौशल तक हुई बंपर वोटिंग के कई मायने निकाले जा रहे हैं। जिसमें लाडली बहना, वोट फॉर चेंज से लेकर नेताओं की जनसभाओं को इसकी वजह माना जा रहा है। लेकिन चुनाव में हुई बंपर वोटिंग से आदिवासी क्या इशारा कर रहे हैं ये 3 दिसंबर को नतीजे बताएंगे।
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