Mega Daily News
Breaking News

India / सत्य ही सबसे बड़ा धर्म माना गया है...सत्य का ज्ञान नहीं होने से ही हमारा समाज... अंध परंपरओं का शिकार : गीता भवन

सत्य ही सबसे बड़ा धर्म माना गया है...सत्य का ज्ञान नहीं होने से ही हमारा समाज... अंध परंपरओं का शिकार : गीता भवन
Paliwalwani April 13, 2022 03:32 AM IST

इंदौर :  सत्य मनुष्य को निर्भय़ बनाता है। सत्य ही सबसे बड़ा धर्म माना गया है। सत्य का ज्ञान नहीं होने से ही हमारा समाज अंध परंपरओं का शिकार हो रहा है। प्रभु राम सत्य के साथ मर्यादा के भी पर्याय हैं। सत्य का चिंतन और आचरण मनुष्य को सही दिशा में प्रवृत्त करता है। मर्यादा जीवन को संस्कारित और मर्यादित रखने का आभूषण है। प्रेम का मूल ज्ञान है और ज्ञान का मूल सत्संग। सत्संग से ही मनुष्य को विवेक की प्राप्ति होती है। हनुमानजी को प्रभु राम का सत्संग मिला तो उनमें भी ईश्वरीय गुणों का दर्शन होता है। हनुमानजी दास हैं, लेकिन दास होते हुए भी भगवान हो गए, यही हमारी भारत भूमि का सबसे उजला पक्ष है कि यहां भक्त भी भगवान हो सकते हैं। शील और शौर्य का समन्वय हनुमानजी के जीवन चरित्र में देखने को मिलता है।

जगदगुरु रामानंदाचार्य, श्रीमठ काशी पीठाधीश्वर स्वामी श्री रामनरेशाचार्यजी ने आज गीता भवन ट्रस्ट द्वारा गीता भवन में आयोजित श्रीराम एवं दास शिरोमणि हनुमान प्राकट्य उत्सव के शुभारंभ सत्र में उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य आज सुबह रेल मार्ग से इंदौर पधारे। गीता भवन आगमन पर ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, आयोजन समिति के दिनेश मित्तल, मनोहर बाहेती, प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग केटी, विष्णु बिंदल, संजय मंगल, महेशचंद्र शास्त्री, बालकृष्ण छाबछरिया आदि ने उनकी अगवानी की। उन्होंने हनुमान मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद भक्तों को प्रसाद वितरण भी किया। इसके पूर्व सुबह राम-हनुमानजी के अभिषेक में सैकड़ों भक्त शामिल हुए। सत्संग के दौरान भारत सरकार के प्रमुख लेखा अधिकारी निरंजनप्रसाद गुप्ता, राम ऐरन, रामविलास राठी, कल्याण ग्रुप के चेयरमैन टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग, कार्यक्रम संयोजक विष्णुप्रसाद बिंदल एवं संजय मंगल ने उनका गरिमापूर्ण सम्मान किया।

स्वामी रामनरेशाचार्यजी ने कहा कि जीवन का परम आनंद सत्य में ही है। सत्य में ईश्वर का वास होता है, धर्मग्रंथों में भी यह बात कही गई है। व्यक्ति को कोशिश करना चाहिए कि सत्य का आश्रय लेकर चले। प्रभु श्रीराम ने कहीं भी असत्य का आचरण नहीं किया। हमारे जीवन में माता-पिता से लेकर अन्य जितनी भी भूमिकाएं हैं, उन्हें कर्तव्य और निष्टा के साथ निभाना चाहिए। तन, मन और लगन से निभाए गए दायित्व ही पुण्य है और जहां हम अपने दायित्वों एवं कर्तव्यों की उपेक्षा करते हैं, वह पाप कर्म होता है। हनुमानजी दास होते हुए भी प्रभु राम के सानिध्य में रहे इसलिए उनमें भी ईश्वरीय गुण आ गए। हनुमानजी शील और शौर्य के उत्कृष्ट उदाहरण है।

RELATED NEWS