गणतंत्र दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि इस बार मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी भारत आ रहे हैं. ऐसा पहली बार है, जब मिस्र के राष्ट्रपति भारत की रिपब्लिक डे परेड के चीफ गेस्ट होंगे. लेकिन मिस्र के राष्ट्रपति का भारत आना कई मायनों में खास है. पहला ये कि मिस्र इस वक्त आर्थिक संकट की चपेट में है. अरब देश भी उसकी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ा रहे हैं. बीते दिनों जब भारत ने गेहूं के एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगाई थी, उस वक्त भी कई टन खेप भारत ने मिस्र को भेजी थी. अब जानिए कौन हैं फतेह अल सीसी.
सीसी की पहचान मिस्र के प्रभावशावी नेता के तौर पर होती है, जिन्होंने देश को राजनीतिक स्थिरता दी है. कहा तो यहां तक जाता है कि उनकी अपने देश की सत्ता पर बहुत मजबूत पकड़ है. वह सेना प्रमुख भी रह चुके हैं. जुलाई 2013 में उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी का तख्तापलट करते हुए उनको सत्ता से बाहर कर दिया और खुद साल भर बाद राष्ट्रपति बन गए.
पिता करते थे फर्नीचर का काम
उनका परिवार इस्लाम धर्म का पालन करता है. 1954 में काहिरा के गमलेया इलाके में जन्मे सीसी के पिता फर्नीचर का काम करते थे. उनकी कमाई इतनी ही हो पाती थी ताकि घर चल सके. बचपन से ही सीसी सेना में जाना चाहते थे. वह पढ़ाई-लिखाई में भी होशियार थे.
उन्होंने साल 1977 में मिस्र की मिलिट्री एकेडमी से ग्रेजुशन की पढ़ाई की. फिर पैदल सेना में शामिल हुए. अपने तेज दिमाग के कारण वह जल्दी-जल्दी बड़े पदों पर पहुंचने लगे. उनके शानदार काम के कारण उनको देश की मिलिट्री इंटेलिजेंस का हेड बना दिया गया. सेना में रहते हुए भी उनका पढ़ाई-लिखाई से लगाव कम नहीं हुआ. ब्रिटेन के स्टाफ कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद साल 2005 में पेन्सिलवेनिया के आर्मी कॉलेज से मास्टर्स पूरा किया.
इस्लाम को लेकर था लगाव
सियासत में सीसी तब उभरने शुरू हुए, जब सेना में जनरल रहते हुए सुरक्षाबलों की सबसे बड़ी परिषद (एससीएएफ) का सदस्य बनाया गया. कॉलेज के दिनों से ही सीसी का इस्लाम को लेकर लगाव ज्यादा था. लिहाजा मिस्र में इस्लामिक शासन की वकालत करने वाला मुस्लिम ब्रदरहुड भी सीसी के विचारों से प्रभावित था. इन विचारों की वजह से वह तत्कालीन राष्ट्रपति मोर्सी के चहेते थे. इस कारण उनको आर्मी चीफ और रक्षा मंत्री का पदभार सौंप दिया गया. उनको 'मोर्सी मैन' तक कहा जाने लगा.
मुस्लिम ब्रदरहुड को लेकर सीसी को एक प्रकार से चिढ़ थी. देश में इसके खिलाफ प्रदर्शन होने लगे और आर्थिक लंगी के खिलाफ लोग सड़कों पर आकर मोर्सी से इस्तीफा मांगने लगे. जून 2013 में जब प्रदर्शन तेज हुए तो सीसी ने यहां तक चेतावनी दी कि अगर लोगों की इच्छा को सरकार ने नहीं माना तो सेना दखल देगी. इससे लोगों में पॉजिटिव संदेश गया. साल 2014 में वह फील्ड मार्शल बनाए गए. दो महीने बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया और चुनाव लड़ने की तैयारियों में जुट गए. साल 2014 में वह मिस्र के राष्ट्रपति बने. इसके पीछे मिस्र की सेना का बड़ा हाथ था.