सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि हर एक परोपकार, अच्छे काम का स्वागत है लेकिन इसका मकसद किसी का धर्म परिवर्तन नहीं होना चाहिए. देश के हर शख्स को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हासिल है. उस लिहाज से उसे कोई भी धर्म अपनाने की आजादी है, लेकिन यह धर्म परिवर्तन जोर जबरदस्ती से, प्रलोभन देकर या फिर धोखे से नहीं होना चाहिए. ऐसा करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
अश्विनी उपाध्याय की याचिका
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने यह टिप्पणी वकील अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) की अर्जी पर सुनवाई के दौरान की. उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में लोगों को डरा धमका कर, प्रलोभन देकर और काला जादू/अंधविश्वास का सहारा लेकर हो रहे धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र और राज्यों की तरफ से सख्त कदम उठाने की मांग की गई है.
केंद्र ने जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त मांगा
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वो राज्यों से जानकारी लेकर विस्तृत हलफनामा दायर करें. आज केंद्र की ओर से इसके लिए समय की मांग की गई. कोर्ट ने इसके लिए वक्त देते हुए सुनवाई 12 दिसंबर के लिए टाल दी.
'लालच देकर होने वाला धर्मांतरण संविधान के खिलाफ'
इसी बीच एक वकील की ओर से याचिका की सुनवाई पर सवाल उठाया गया तो बेंच ने उन्हें टोक दिया. बेंच ने कहा कि हम किसी मकसद से ही इस मसले पर सुनवाई करने के लिए बैठे है. अगर किसी को लगता है कि किसी समुदाय/लोगों को मदद की जरूरत है तो उनकी मदद कीजिए. पर इसके पीछे के असल मकसद को देखने की जरूरत है. सहायता करने का मकसद धर्मांतरण नहीं हो सकता. प्रलोभन देकर किया जाने वाला धर्मांतरण एक गंभीर मसला है और ये हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. इस देश में रहने वाले हर शख्स से उम्मीद की जाती है कि वो देश की सभ्यता, सौहार्द को कायम रखने को लेकर काम करें.
केंद्र सरकार का रुख
इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की याचिका का समर्थन करते कहा था कि वो लोगों को डरा धमका कर, प्रलोभन देकर हो रहे धर्मांतरण को गंभीर मसला मानती है. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में किसी दूसरे का धर्म परिवर्तन करना शामिल नहीं है. केंद्र सरकार इस मसले की गंभीरता को देखते हुए जरूरी कदम उठाएगी.