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India / राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके, डी वाई चंद्रचूड़ को भारत का अगला चीफ जस्टिस बनाया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके, डी वाई चंद्रचूड़ को भारत का अगला चीफ जस्टिस बनाया
Mega Daily News October 18, 2022 01:12 AM IST

भारत के अगले चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ होंगे. देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके उन्हें 9 नवंबर 2022 से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश के रूप में नियुक्त किया है. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ट्वीट करते हुए इसकी जानकारी दी.

9 नवंबर को लेंगे शपथ

मौजूदा सीजेआई उदय उमेश ललित के 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर रिटायर हो जाने के एक दिन बाद 9 नवंबर को जस्टिस चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ लेंगे. जस्टिस ललित का 74 दिनों का संक्षिप्त कार्यकाल रहा, जबकि सीजेआई के पद पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो वर्षों का होगा. जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को रिटायर होंगे.

कानून मंत्री ने दी जानकारी

रिजिजू ने ट्वीट किया, ‘संविधान के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए माननीय राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डॉ. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ को देश का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया है. यह नियुक्ति 9 नवंबर 2022 से प्रभावी होगी.’ बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित 8 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. उन्होंने हाल ही में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया. राष्ट्रपति की मुहर के बाद अब वो 50वें सीजेआई बन जाएंगे.

कौन हैं जस्टिस चंद्रचूड़?

गौरतलब है कि जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वाई.वी. चंद्रचूड़ के बेटे हैं, जो 1978 से 1985 के बीच लगभग सात साल और चार महीने पद पर रहे थे. वह सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सीजेआई थे. उनके कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने पिता के दो फैसलों को पलट दिया था, जो व्यभिचार और निजता के अधिकार से संबंधित थे. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हार्वर्ड लॉ स्कूल से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और उन्हें गैर-अनुरूपतावादी न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है. उन्होंने कोविड के समय में वर्चुअल सुनवाई शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो अब एक स्थायी विशेषता बन गई है. वह अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद, समलैंगिकता के अपराधीकरण्,व्यभिचार, निजता, सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश आदि पर ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं.

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