मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने मंगलवार को अपनी 21 महीने पुरानी सरकार का स्ट्रक्चर बदल लिया. उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़कर एक बार फिर लालू प्रसाद यादव की RJD की लालटेन थाम ली. ये भूल कर कि लालू यादव के बेटों से परेशान होकर उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़ा था, नीतीश ने फिर भतीजे तेजस्वी यादव को गले लगा लिया. बिहार की राजनीति में नीतीश और बीजेपी के बीच धुआं तो तीन दिन से उठ रहा था. लेकिन इसकी लपटें आज सुबह तेजी से उठीं, जब खबर आई कि नीतीश JDU विधायकों के साथ एक अहम बैठक करने जा रहे हैं और उसमें कोई बड़ा फ़ैसला होने वाला है.
बैठक में क्या होने वाला है, इसकी पुष्टि थोड़ी देर में उनकी पार्टी के कुछ नेताओं ने और लालू यादव की बेटियों ने भी अपने ट्वीट से कर दी. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के फैसले का अंदाजा तो बीजेपी को भी था, इसलिए बिहार के जो बीजेपी नेता दिल्ली में थे, वो भी फटाफट पटना पहुंच गए. JDU की बैठक हुई तो नीतीश कुमार राजभवन पहुंचे और राज्यपाल फागू चौहान को अपना इस्तीफ़ा सौंपकर आ गए.
बाहर निकलकर नीतीश (Nitish Kumar) ने कहा कि NDA का साथ छोड़ना पूरी पार्टी का फ़ैसला है. इसके बाद नीतीश कुमार सीधे राबड़ी देवी के घर पहुंचे. वहां पर उनके पुराने साथी पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत के लिए तैयार बैठे थे. RJD के सारे विधायक वहां पहले से जमा थे. सबने मिलकर नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता चुना.
इसके बाद शाम को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर राजभवन पहुंचे. इस बार तेजस्वी यादव भी उनके साथ थे. दोनों नेताओं ने राज्यपाल से मिलकर उन्हें 164 विधायकों के समर्थन का पत्र सौंपा और नई सरकार बनाने का दावा पेश किया.
अब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) आज दोपहर को 2 बजे राजभवन में फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. वो आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे. साथ में तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी. तेजस्वी भी दूसरी बार बिहार के डिप्टी सीएम बनेंगे.
अगर आपसे भारतीय राजनीति में इस्तेमाल होने वाले पांच सबसे लोकप्रिय और फैशनेबल शब्द पूछे जाएं तो इनमें एक शब्द नैतिकता भी होगा.
ये वो शब्द है, जिसकी हर नेता दुहाई देता है. जबकि राजनीति के शब्दकोष में नैतिकता की कोई स्पष्ट परिभाषा है ही नहीं और इसी का लाभ राजनेता उठाते हैं. जैसे एक बार फिर नीतीश कुमार ने उठाया. वर्ष 2015 में उन्होंने RJD के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और बिहार में सरकार बनाई. लेकिन 20 महीने बाद ही वर्ष 2017 में RJD का उन्होंने साथ छोड़ दिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. इसके बाद वर्ष 2020 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. अब ठीक 21 महीने बाद बीजेपी का साथ छोड़कर फिर से RJD के साथ गठबन्धन कर लिया.
अब आप इसे राजनैतिक अनैतिकता नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे. लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अगर चाहें तो कल इसे भी नैतिकता का चोला पहना सकते हैं. वो कह सकते हैं कि 10 साल में किसी भी सरकार के दो टर्म होते हैं. इस लिहाज़ से उन्होंने पांच साल 23 दिन सरकार चलाकर बीजेपी के साथ टर्म पूरा कर लिया है और 2015 का जो टर्म RJD के साथ उन्होंने आधा ही पूरा किया था, बाक़ी का आधा अब पूरा करने जा रहे हैं. राजनीति में कुछ भी संभव है.
हम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बीजेपी का साथ छोड़ने के कारणों पर भी बात करेंगे. लेकिन उससे पहले आपको बताते हैं कि बिहार विधानसभा में संख्या बल क्या है और अब नीतीश कुमार के पास क्या नंबर हैं.
बिहार विधानसभा में कुल सदस्यों की कुल संख्या 243 है. और एक पद खाली होने से मौजूदा संख्या 242 रह गई है. इनमें बहुमत साबित करने के लिए 122 सदस्यों की ज़रूरत है. इनमें बीजेपी के पास 77 विधायक हैं, RJD के पास 79, जेडीयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, लेफ्ट पार्टियों के पास 16, जीतन राम मांझी की HAM पार्टी के पास 4 विधायक और AIMIM का एक विधायक और एक विधायक निर्दलीय है.
ये तो बिहार विधानसभा का कुल संख्या गणित है. अब आपको बताते हैं कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ नया संख्या बल किस तरह का है. नीतीश कुमार ने जो नया बहुमत राज्यपाल को बतायास उसमें कुल सात पार्टियों के नाम हैं.
नीतीश ने जिन 164 विधायकों के समर्थन का दावा किया है, उनमें सबसे ज़्यादा 79 विधायक आरजेडी के हैं, खुद उनकी पार्टी जेडीयू के 45 विधायक हैं, 3 लेफ्ट पार्टियों के 16 विधायक हैं, कांग्रेस के 19 विधायक हैं, HAM पार्टी के 4 और एक निर्दलीय विधायक हैं.