कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' भले ही राजस्थान से शांतिपूर्ण तरीके से गुजरी हो, लेकिन गहलोत और पायलट खेमों में फूट लगातार बढ़ती दिख रही है, क्योंकि दोनों समूहों के बीच वाकयुद्ध में कोई कमी नहीं आई है. हाल ही में जहां गहलोत ने अपने एक वीडियो में पायलट को पार्टी में बड़ा कोरोना करार दिया, वहीं पायलट ने पेपर लीक को लेकर अपनी ही सरकार पर सवाल उठाए. बयानों की यह तीखी जंग राहुल गांधी की यात्रा के राजस्थान से शांतिपूर्ण ढंग से गुजरने के तुरंत बाद शुरू हुई, जब सभी की निगाहें आलाकमान पर थीं कि क्या वह राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के संबंध में कोई फैसला लेगा.
पायलट ने किए किसान सम्मेलन
हालांकि, इंतजार के बाद जब दिल्ली से किसी भी बदलाव या कार्रवाई का कोई संकेत नहीं मिला, तो सचिन पायलट ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में अपने किसान सम्मेलन शुरू किए, जिसमें भारी भीड़ उमड़ी. इनमें से एक सम्मेलन में, पायलट ने अशोक गहलोत सरकार पर बिना नाम लिए हमला किया और कहा कि राज्य को हाल ही में रिपोर्ट किए गए भर्ती परीक्षा पेपर लीक के पीछे 'बड़ी मछलियों' के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.
इसके जवाब में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने जो कार्रवाई की है वह इस घोटाले के सरगनाओं के खिलाफ है. गहलोत ने विपक्ष के आरोपों का भी खंडन किया कि उनकी पार्टी के नेता या सरकारी अधिकारी भर्ती पेपर लीक में शामिल थे.
दोनों खेमों में दरार दिखाने वाली अगली घटना में एक वीडियो सामने आया. इसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री को कथित तौर पर यह कहते हुए दिखाया गया है कि महामारी के बाद एक 'बड़ा कोरोना' कांग्रेस में घुस गया. यह दिखाता है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है. जबकि गहलोत ने कोई नाम नहीं लिया, इस टिप्पणी को पायलट से जोड़ा गया था.
'युवा पीढ़ी के बारे में सोचना चाहिए'
पायलट ने बदले में गहलोत पर कटाक्ष करते हुए कहा कि बुजुर्गों को युवा पीढ़ी के बारे में सोचना चाहिए और युवाओं को न्याय मिलना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि नेताओं को कभी भी विरोधियों के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जो वे खुद नहीं सुन सकते.
इस बीच, कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर जनवरी में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के लिए जयपुर में थे. इस दौरान उन्होंने कहा था, 'हमें अपने पार्टी सहयोगियों पर निर्देशित करने से पहले शब्दों को ध्यान से तौलना चाहिए. मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने अपने 14 साल के राजनीतिक करियर में कभी किसी के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया. एक-दो बार मैंने कहा कि मैं कीचड़ में कुश्ती नहीं लड़ना चाहता.'
सबकी नजरें आलाकमान पर
जनवरी में ये टकराव पार्टी को परेशान करता रहा. राजस्थान के पार्टी प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने एक बार फिर घोषणा की कि राजस्थान पर कोई भी फैसला 30 जनवरी को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के पूरा होने के बाद लिया जाएगा. उम्मीद की जा रही थी कि गहलोत बजट पेश करेंगे और फिर कुछ घोषणा हो सकती है.
हालांकि एक बार फिर इंतजार शुरू हो गया है कि 25 सितंबर की घटना के बाद आलाकमान कोई कार्रवाई करता है या नहीं, जब गहलोत खेमे के विधायकों ने नेतृत्व परिवर्तन को लेकर आलाकमान की बैठक के हटकर बैठक बुलाई थी.
बताया गया कि बैठक में 91 से अधिक विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, हाल ही में हाई कोर्ट में यह पेश किया गया था कि 81 विधायकों ने इस्तीफा दिया था और उनके इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे और इसलिए उन्हें अध्यक्ष की ओर से खारिज कर दिया गया था.
उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कोर्ट से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था, क्योंकि 91 विधायकों के इस्तीफे पर फैसला तीन महीने बाद भी स्पीकर के पास लंबित था. कोर्ट ने अध्यक्ष से जवाब मांगा और जवाब आया कि इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे. इससे एक बार फिर अटकलों का दौर शुरू हो गया.
पायलट-गहलोत के बीच सत्ता का टकराव
यह कोई रहस्य नहीं है कि राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रमुख पायलट का कुछ समय से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ सत्ता का टकराव चल रहा है. राज्य कांग्रेस इकाई गुटबाजी से परेशान है. पायलट ने 16 जनवरी को अपनी यात्रा शुरू की और बीकानेर और हनुमानगढ़ में किसानों के साथ बैठकें कीं. इन बैठकों ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर राज्य में सत्ता परिवर्तन का आह्वान करने के लिए दबाव डाला.
अब, जब राजस्थान से भारत जोड़ो यात्रा के निकले हुए दो महीने होने वाले हैं, हर कोई यह देखने के लिए इंतजार कर रहा है कि क्या कोई बदलाव होगा या चीजें वैसे ही चलती रहेंगी. पायलट को क्या भूमिका मिलेगी, यह सवाल राजनीतिक गलियारों में पूछा जा रहा है, लेकिन कोई नेता नहीं बोलेगा. सब यही कहते हैं, 'प्रतीक्षा करें और देखें.'