हर साल अक्तूबर से नवंबर के बीच सांस जनित रोगों के मामले तेजी से बढ़ने लगते हैं। तापमान तेजी से नीचे जाता है और हवा में पीएम 2.5 तथा पीएम 10 के बढ़ते स्तर के साथ-साथ वाहनों और पटाखों का धुआं स्थिति को गंभीर बना देते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसी मौसम में जोड़ों के दर्द की समस्या बढ़ जाती है। हृदय, फेफड़े, उच्च रक्तचाप और त्वचा रोगों से जूझने वालों के लिए शुरुआत से खास ध्यान रखना त्योहार और सर्दियां दोनों को सुकूनमय बना सकता है।
ठंडा मौसम सांस के मरीजों के लिए विशेषरूप से हानिकारक होता है। फेफड़ों से संबंधित रोगों जैसे- ब्रॉन्काइटिस, अस्थमा, एबीपीए, पीएएच और सीओपीडी के लक्षण इस समय और गंभीर बन जाते हैं। इन दिनों घरों में साफ- स्तर पर हो रहे होते हैं, जो माहौल में धूल के महीन कणों को कई गुना बढ़ा देते हैं। पटाखों के धुएं में जिंक, मैग्नीज, सोडियम और लेड जैसे खतरनाक तत्व होते हैं, जो हवा को हानिकारक बना देते हैं। महीन धूल और हानिकारक गैसों से युक्त यह हवा फेफड़ों के गंभीर रोगों से जूझ रहे लोगों को काफी नुकसान पहुंचाती है।
पटाखों से निकलने वाले धुएं में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा असामान्य रूप से अधिक होती है, जो सांस की नली में प्रवेश कर उसे संकुचित कर देती है। नतीजतन, ब्रॉन्कियल अस्थमा, निमोनिया और साइनोसाइटिस की समस्याएं बढ़ जाती हैं। परिणामस्वरूप, बार-बार सांस फूलना, ऑक्सीजन का स्तर सामान्य से नीचे चले जाने के अलावा अस्थमा अटैक के मामले इस समय बढ़ जाते हैं।
कैसे करें बचाव-
-घर से बाहर निकलते समय एन 95 मास्क लगाएं।
जोड़ों की समस्या-
ठंड का समय जोड़ों की तकलीफ को बढ़ाने वाला होता है। हालांकि जोड़ों के दर्द का मुख्य कारण गठिया होता है, पर ठंड में तापमान कम होने की वजह से मांसपेशियां ऐंठने लगती हैं। जोड़ों में संकुचन और कड़ापन आने लगता है। यही वजह है कि ठंड की शुरुआत होते ही जोड़ों की तकलीफ से जूझ रहे लोगों की समस्याएं बढ़ने लगती हैं।
इस समय फ्रोजन शोल्डर, गर्दन और पीठ दर्द के मामले भी बढ़ जाते हैं। खासकर, महिलाओं में साफ-सफाई, भारी सामान को उठाने में हुई लापरवाही के कारण कंधों में दर्द व मांसपेशियों में खिंचाव की समस्या बढ़ जाती है। त्योहारों की भागदौड़, तनाव और बढ़ा हुआ शारीरिक श्रम हड्डियों व जोड़ों में दर्द के लक्षणों को गंभीर कर देता है।
क्या है बचाव-
त्वचा संबंधी रोग-
मौसम बदलने का सबसे विपरीत प्रभाव त्वचा को झेलना पड़ता है। वातावरण में आई शुष्कता, त्वचा की नमी को छीन लेती है। ऐसे लोग जो पानी कम पीते हैं, उनमें त्वचा की समस्याएं, जैसे शुष्क त्वचा, ऐड़ियां फटना, खुजली, त्वचा का पपड़ी बनकर उतरना आदि खासतौर पर देखने को मिलते हैं। हमारे आस-पास ऐसे अनेक सूक्ष्मजीव हैं, जो ठंड में तेजी से बढ़ने लगते हैं। अल्टरनारिया, पेनिसिलियम, एस्परजिलस और क्लोडोस्पोलियम आदि सूक्ष्मजीव त्वचा रोगों के खतरे को बढ़ा देते हैं। नतीजतन, इस मौसम में सोराइसिस, एग्जिमा, डर्मेटाइटिस और एटोपिक डर्मेटाइटिस व डैंड्रफ के मामले बढ़ जाते हैं।
वातावरण में फैला प्रदूषण भी त्वचा के रोगों को गंभीर बना देता है। हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक प्रदूषक त्वचा के ऊपरी सुरक्षात्मक कवच को नष्ट कर देते हैं। नतीजतन, लगातार प्रदूषित हवा में रहने से त्वचा पर झुर्रिया पड़ना, मुहांसे और पहले से त्वचा की समस्या से जूझ रहे लोगों में लक्षण गंभीर होने लगते हैं।
कैसे करें बचाव-
इन बातों का भी रखें ध्यान-
-छोटे बच्चों को अकेला न छोड़ें। खासतौर पर जहां निर्माण कार्य हो रहे हैं या फिर पटाखे जलाते समय बड़ों की मौजूदगी व निगरानी जरूरी है।