उत्तराखंड (Uttarakhand) के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर हक किसका है, इस सवाल को लेकर जंग चल रही है. ये जंग रेलवे और उन लोगों के बीच है, जिनका दावा है कि वो यहां पर पिछले कई दशकों से रह रहे हैं. यहां के कुछ लोगों का ये भी कहना है कि वो यहां पर 100 साल से भी ज्यादा समय से रह रहे हैं.
इन बस्तियों पर संकट
हल्द्वानी के जिस इलाके में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण बताया जा रहा है, वो करीब 2200 मीटर लंबी रेलवे लाइन का क्षेत्र है. इस 2200 मीटर लंबी रेलवे लाइन के आसपास 800 फीट चौड़ाई तक की जमीन पर अतिक्रमण है. अतिक्रमण के नाम इस क्षेत्र में 3 सरकारी स्कूल, 11 प्राइवेट स्कूल, 10 मस्जिद, 12 मदरसे,1 सरकारी स्वास्थ्य केंद्र, 1 मंदिर और 1 पानी की टंकी है. रेलवे की जिस जमीन पर अतिक्रमण है, उसकी जद में 7 बस्तियां हैं. जिनमें ढोलक बस्ती, गफूर बस्ती, किडवई नगर, लाइन नंबर 17, नई बस्ती, इंद्रा नगर छोटी रोड और इंद्रा नगर बड़ी रोड का नाम भी शामिल हैं.
उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर कार्रवाई
ये जितनी भी बस्तियां हैं, उनको प्रशासन नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर हटाने की तैयारी में है. प्रशासन को रेलवे की जमीन पर से अतिक्रमण हटाना है. अब कोर्ट का आदेश है और कागजों पर ये जमीन रेलवे की है, तो अतिक्रमण पर बुलडोजर चलेगा ही चलेगा.
2013 में लगी थी जनहित याचिका
वर्ष 2013 में नैनीताल हाईकोर्ट में एक सामाजिक कार्यकर्ता ने जनहित याचिका दाखिल की. इस याचिका में बताया गया कि रेलवे स्टेशन के पास गउला नदी में अवैध खनन हो रहा है. इसी नदी पर बना पुल अवैध खनन की वजह से ही वर्ष 2004 में गिर गया था. याचिका में कहा गया कि अवैध खनन करने वाले लोग वही हैं, जिन्होंने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया हुआ था. रेलवे की जमीन का मुद्दा आने के बाद कोर्ट ने रेलवे से भी जवाब मांगा था.
रेलवे का तर्क
रेलवे ने अपने पक्ष में वर्ष 1959 का नोटिफिकेशन, वर्ष 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड और वर्ष 2017 का लैंड सर्वे दिखाकर साबित किया कि ये जमीन उनकी है. हाईकोर्ट में जब ये साबित हो गया कि जमीन रेलवे की है, तो उसके बाद जमीन खाली करने के आदेश दे दिए गए. यहां रहने वाले लोगों को तब तक केस में पार्टी नहीं बनाया गया था. लोगों ने जमीन खाली करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट से इन लोगों का भी पक्ष सुनने के लिए कहा. लंबी सुनवाई के बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने सबूतों के आधार पर माना कि रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया गया है.
लोगों में खलबली
रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू हुई, तो वर्षों से यहां बसे लोगों में खलबली मच गई. इस पूरे इलाके में करीब 60 हजार लोग रहते हैं. इसमें 35 से 40 हजार लोगों के पास वोटर आईडी कार्ड भी है. यहां रहने वालों लोगों ने आधार कार्ड भी बनवाया हुआ है. अतिक्रमण हटाने के नाम पर बेघर करने वाली कार्रवाई को लेकर यहां के लोगों में गुस्सी भी है और बेघर होने का डर भी.
मामला रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का
वैसे ये मामला रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का है. भारतीय रेल का आधिकारिक आंकड़ा है कि देश में रेलवे की 814.5 हेक्टेयर जमीन पर किसी ना किसी प्रकार का अतिक्रमण है. तो हल्द्वानी का मामला देखकर, ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि ये अतिक्रमण का कोई पहला मामला हो. ये भी नहीं कहा जा सकता है कि अतिक्रमण को हटाने पर हुए बवाल का ये कोई पहला मामला हो.
रेलवे के पास कार्रवाई का अधिकार
रेलवे एक्ट 1989 के सेक्शन 147 के तहत, रेलवे अपनी कब्जाई गई ज़मीन को खाली करवा सकता है. जो इस काम में बाधा डालेगा,उसपर 6 महीने की कैद या जुर्माना लग सकता है. पीपीई एक्ट 1971 के तहत भी रेलवे अपनी जमीन खाली करवा सकता है.
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
इस तरह के कई मामले पहले भी आ चुके हैं, जिसमें रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया गया और कोर्ट के आदेश पर उसे हटाया भी गया है. 2021 में गुजरात के सूरत में भी ऐसा ही एक मामला था. इस मामले में भी अतिक्रमण करने वाले लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. कोर्ट ने अवैध कब्जा खाली कराने का आदेश दिया, और सरकार को ये सलाह दी कि जो लोग हटाए जा रहे हैं, उनको तुरंत राहत देने के लिए पीएम आवास योजना के तहत घर उपलब्ध करवाने चाहिए.