हिंदू धर्म शास्त्रों में एक परंपरा हैं मस्तक पर यानि माथे पर त्रिपुंड लगाने की. आखिर साधु संत क्यों लगाते हैं त्रिपुंड. शास्त्रों के अनुसार क्या है इसका महत्व. त्रिपुंड लगाने की परंपरा पर क्या कहता है विज्ञान और क्या है इस त्रिपुंड को लगाने के महालाभ, आइए जानते हैं. मानव शरीर को ईश्वर की सबसे अनोखी, सुंदर और बेहतरीन रचना है. परमात्मा से आपकी आत्मा को जोड़े रखने के लिए धर्म शास्त्रों में कई साधनों का जिक्र मिलता है. इन्हीं साधनों में से एक हैं त्रिपुंड. धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रिपुंड में 27 दिव्य शक्तियों का वास होता है.
3 रेखाओं में त्रिलोकीनाथ की शक्ति, बेहद शक्तिशाली है त्रिपुंड
साधू-संतों, तपस्वियों और पंडितों के माथे पर चन्दन या भस्म से बनी तीन रेखाएं कोई साधारण रेखाएं नहीं होती है. ललाट पर बनी इन तीन रेखाओं में देवी देवताओं की शक्ति समाई रहती है और इन तीन शक्तिशाली रेखाओं को त्रिपुण्ड कहते है. त्रिपुंड धार्मिक आस्था के साथ ही ईश्वर की भक्ति में रम जाने और उनसे अद्भुत शक्ति पाने का भी एक माध्यम है. ललाट पर चमकने वाली इन तेजस्वी रेखाओं की महिमा बहुत खास है.
त्रिपुंड की महिमा
माथे पर चंदन या भस्म से बनी तीन रेखाएं त्रिपुंड कहलाती हैं. चन्दन या भस्म द्वारा तीन उंगुलियों की मदद से त्रिपुण्ड बनाया जाता है. ललाट की इन तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है. प्रत्येक रेखा में 9 देवताओं का वास होता हैं. त्रिपुंड धारण करने वालों पर शिव की विशेष कृपा होती है. त्रिपुंड परमब्रह्म की शक्ति का सूचक है. ये ईश्वर की भक्ति में सराबोर हो जाने और उनकी कृपा पाने का भी एक सूचक है. त्रिपुण्ड से जुड़ी कुछ अद्भुत और रोचक बातें हम आपको आज बताएंगे जो अब तक शायद आपको नहीं पता थीं.
त्रिपुंड रेखाओं में इन देवताओं का वास
आइए जानते हैं त्रिपुंड की तीनों रेखाओं में वास करने वाले देवों के बारे में. त्रिपुंड में अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण का वास, ऋग्वेद, क्रिया शक्ति, प्रात:स्वन और महादेव का वास होता है. मान्यता है कि त्रिपुंड लगाने से मस्तक की शोभा तो बढ़ती ही है भाग्य भी चमकता है. त्रिपुंड की दूसरी रेखा में भी 9 देव विराजमान हैं.त्रिपुंड की दूसरी रेखा में कौन से देव होते हैं देखिए. इसकी दूसरी रेखा में भी 9 देव विराजमान रहते हैं. इनमें ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा और महेश्वर का वास होता है. वहीं त्रिपुंड की तीसरी रेखा में भी 9 देतवाओं का वास होता है.
त्रिपुण्ड धारण करने के तरीके
इस तरह त्रिपुंड की 3 रेखाओं में 27 देवों का वास होता है. लेकिन ये विचार मन में ना रखें कि त्रिपुण्ड केवल माथे पर ही लगाया जाता है. त्रिपुण्ड शरीर के कुल 32 अंगों पर लगाया जाता है. क्योंकि अलग-अलग अंगों पर लगाए जाने वाले त्रिपुंड का प्रभाव और महत्व भी अलग है. शरीर के कौन से हिस्से पर त्रिपुंड लगाने से किस देव की कृपा बरसती है, आइए बताते हैं.
और आस्था के इस निशान को त्रिपुंड कहते हैं. ये निशान इंसान के ललाट पर ही नहीं बल्कि आदि और अनंत से परे महादेव के मस्तक की भी शोभा बढ़ाते हैं. त्रिपुंड की प्रत्येक रेखा 9 देवों के आशीर्वाद से शोभायमान रहती है. यानि त्रिपुंड की तीन रेखा में 27 देवों का आशीर्वाद समाहित है. त्रिपुंड सिर्फ मस्तक पर ही नहीं बल्कि शरीर के 32 अंगों पर लगया जाता है.
शरीर के 32 हिस्से जहां लगाया जाता है त्रिपुंड
मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, ह्रदय, दोनों पाश्र्व भाग, नाभि, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर भी शामिल हैं. दरअसल इन अंगों में अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु, दस दिक्प्रदेश, दस दिक्पाल और आठ वसु वास करते हैं. शरीर के हर हिस्से में देवताओं का वास है. शास्त्रों के मुताबिक मस्तक में शिव, केश में चंद्रमा, दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा, मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, ह्रदय में शंभू, नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग और नागकन्याएं, दोनों घुटनों में ऋषि कन्याएं, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ठभाग में सभी तीर्थ देवता रूप में रहते हैं.
'त्रिपुंड हमेशा चंदन या भस्म से लगाया जाना चाहिए'
ज्योतिषी कहते हैं कि त्रिपुंड हमेशा चंदन या भस्म से लगाया जाना चाहिए. भस्म से त्रिपुंड लगाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है. दरअसल भष्म जली हुई वस्तुओं की राख होती है. सभी राख भस्म के रूप में प्रयोग करने योग्य नहीं होती है. उन्हीं राख का भस्म प्रयोग करें जो पवित्र कार्य के हवन, यज्ञ से प्राप्त हुई हो.
त्रिपुंड लगाने के महालाभ
त्रिपुंड की महिमा का गुणगान शिव पुराण में भी किया गया है. शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति नियमित अपने माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड धारण करता है. उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति शिव कृपा का पात्र बन जाता है. यही नहीं विज्ञान ने भी त्रिपुण्ड को लगाने या धारण करने के लाभ बताएं हैं. धर्म शास्त्रों में लिखित हर परंपरा और हर वस्तु से जुड़ा एक वैज्ञानिक पहलू भी है. जी हां आस्था और धर्म के नजरिए से बेहद अहम त्रिपुंड को विज्ञान भी मानव जीवन के लिए कल्याणकारी मानता है.
27 देवों की शक्ति से सुसज्जित त्रिपुंड की अपनी ही महिमा है. त्रिपुंड साक्षात शिव का आशीर्वाद है. धार्मिक नजरिए से त्रिपुंड अत्यंत फलदायी माना गया है.
माथे पर लगाई जाने वाली तीन रेखाएं त्रिपुंड हैं.
इसे शिव तिलक भी कहते हैं.
ये शरीर की तीन नाडियों का प्रतिनिधित्व करती हैं.
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का प्रतिनिधित्व करती हैं.
इसे लगाने से आत्मा को परम शांति मिलती है.
ये सेहत की दृष्टि से भी चमत्कारिक लाभ देती है.
त्रिपुंड की प्रथम रेखा के देवता महादेव हैं.
त्रिपुंड की दूसरी रेखा के देवता महेश्वर हैं.
त्रिपुंड की तीसरी रेखा के देवता शिव हैं.
इन 3 देवताओं को नमस्कार करके ही त्रिपुंड लगाएं.
त्रिपुण्ड धारण करने से सब देवता प्रसन्न होते हैं.
त्रिपुंड धारण करने से भक्त मोक्ष का अधिकारी होता है.
विज्ञान कहता है कि त्रिपुण्ड चंदन या भस्म से लगाया जाता है.
चंदन और भस्म माथे को शीतलता प्रदान करता है.
इसे धारण करने से मानसिक शांति मिलती है.
अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है, ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है.
तो इस तरह ये साफ होता है कि त्रिपुंड धारण करना धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों की नजरिए से कल्याणकारी है.