हिंदू धर्म में शनि अमावस्या का काफी अधिक महत्व है। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद की अमावस्या तिथि 27 अगस्त, शनिवार को पड़ रही है। शनिवार को पड़ने के कारण इसे शनिश्चरी अमावस्या के नाम से भी जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार, शनि अमावस्या के दिन स्नान-दान के साथ भगवान शनि की पूजा करने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही इस दिन पितरों का तर्पण करने का भी शुभ फल प्राप्त होगा। पंचांग के अनुसार, इस साल भादो में पड़ने वाली अमावस्या पर काफी दुर्लभ संयोग बन रहा है। शनि अमावस्या का शुभ मुहूर्त और कुंडली से शनि दोष, शनि साढ़े साती और ढैय्या दूर करने के उपाय।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद की अमावस्या तिथि 26 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से शुरू हो रही है जो 27 अगस्त, शनिवार को दोपहर 1 बजकर 47 मिनट को समाप्त होगी
ऐसे में उदया तिथि की मान्यता के अनुसार, शनिवार को अमावस्या तिथि मान्य होगी।
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक
शिव योग - 27 अगस्त की सुबह 2 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 28 अगस्त सुबह 2 बजकर 6 मिनट तक
सिद्ध योग- 28 अगस्त सुबह 2 बजकर 7 मिनट से शुरू हो रहा है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, भादो मास में शनि अमावस्या का होना काफी दुर्लभ माना जाता रहा है। क्योंकि ऐसा संयोग 2008 में बना था। ज्योतिषों के अनुसार, 14 साल पहले 30 अगस्त 2008 को भादो मास में शनि अमावस्या का योग बना था। इसलिए ऐसे दुर्लभ संयोग में भगवान शनि की पूजा करने का विशेष फल मिलेगा।
अमावस्या के दिन शनि साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव को कम करने के लिए रुद्राक्ष की माला से ऊँ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
शनि अमावस्या के दिन शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित करें। इसके साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
शनि अमावस्या के दिन दान का काफी महत्व है। इसलिए इस दिन शनिदेव संबंधी चीजों का दान करना चाहिए इसलिए शनिश्चरी अमावस्या के दिन आटा, शक्कर, काले तिल को मिलाकर चींटियों को खिलाएं।
शनि अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं। इसके साथ ही शाम के समय सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इससे कुंडली में साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव भी कम होगा।