पितृ विसर्जनी अमावस्या 25 सितंबर को है। इस दिन ज्ञात व अज्ञात पूर्वजों के नाम पर श्राद्ध तर्पण करना श्रेयस्कर होता है। इस दिन तिथि अज्ञात होने पर श्राद्ध का फल पूर्वजों को मिल जाता है। 25 काे मध्याह्न काल में ही श्राद्ध क्रिया करना चाहिए। अमावस्या तिथि पूरे दिन व रात्रि 3:24 बजे तक रहेगी जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो उन्हें अमावस्या तिथि पर ही श्राद्ध करना चाहिए। गीता का पाठ, रुद्राष्ट्राध्यायी के पुरुष सूक्त,रुद्र सूक्त ब्रह्म सूक्त का पाठ भी करना चाहिए।
पीपल के वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु का पूजन कर गाय का दूध चढ़ाएं पितृ श्राप से मुक्ति के लिए इस दिन पीपल एक पौधा भी अवश्य ही लगाना चाहिए। श्राद्ध चिन्तामणि के अनुसार किसी मृत आत्मा का तीन वर्षो तक श्राद्ध कर्म नहीं करने पर जीवात्मा का प्रवेश प्रेत योनि में हो जाता है, जो तमोगुणी रजोगुणी एवं सतोगुणी होती है। पृथ्वी पर रहने वाली आत्माएं तमोगुणी होती हैं। अत: इनकी मुक्ति अवश्य करनी चाहिए।
पितृविसर्जन के दिन पितृ लोक से आये हुयें पितरो की विदाई होती है। उस दिन तीन या छः ब्राह्मणों को मध्याहन के समय घी में बने हुये पुआ,गोदुग्ध में बने खीर आदि सुस्वादुकर भोजन से संतृप्त कर उन्हें वस्त्र दक्षिणा आदि देकर विदा करें एवं सायं काल घी का दीपक जलाकर पितृ लोक गमन मार्ग को आलोकित करने की परिकल्पना करें ! जिससे पितृ संतुष्ट होकर अपने वंश के उत्थान की कामना करते हुए स्वलोक गमन करेगें। सरोवरों के किनारे नदी के घाटों पर श्राद्ध करना चाहिए।