हिंदू धर्म में पूजा व पर्व में दीपक जलाने का विशेष महत्व है. इसे जीवन में अंधकार यानी अज्ञान के गमन व प्रकाश स्वरूप ज्ञान के आगमन का प्रतीक माना जाता है. वास्तु व वैज्ञानिक आधार पर भी दीप प्रज्ज्वलन सकारात्मक उर्जा बढ़ाने वाला होता है. यही वजह है कि हिंदू धर्म के हर संस्कार में इसका महत्व है, पर बहुत कम लोग ये जानते हैं कि जिस दीपक को शुभ का प्रतीक माना गया है, उसे बुझाना भी उतना ही अशुभ माना जाता है. आज हम इसी से संबंधित मान्यताओं के बारे में बताने जा रहे हैं.
दीपक बुझाने वाला होता है काना
ज्योतिषाचार्य पंडित रामचंद्र जोशी ने बताया कि भविष्यपुराण में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को दीप दान के बारे में बताने का जिक्र है, जिसमें वे दीप दान की विधि के साथ दीपक को बुझाने, हटाने व चुराने तीनों को ही निषेध बताते हैं. वे कहते हैं कि दीपदान करने वाले की गति दीपक की लौ की तरह ऊपर की तरफ होती है, इसलिए पुण्य अवसरों पर स्त्री व पुरुषों को दीप दान जरूर करना चाहिए. आगे वे कहते हैं कि दीपक को कभी बुझाना नहीं चाहिए और ना ही उसे स्थान से हटाना चाहिए, क्योंकि दीप बुझा देने वाला काना होता है और दीप को चुराने वाला अंधा होता है. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि दीपक बुझाना बहुत निंदनीय कार्य है.
शुद्ध, पवित्र व साक्षी है अग्नि
पंडित जोशी के अनुसार, अन्य वैदिक ग्रंथों में भी दीप बुझाने की मनाही है. इसकी वजह ये है कि दीपक बुझाने का अर्थ अग्नि को बुझाना होता है, जबकि अग्नि देव पवित्रता व शुद्धिकरण का प्रतीक है. विवाह व हवन आदि शुभ कार्य भी अग्नि की उपस्थिति व साक्ष्य को अनिवार्य माना जाता है. उसी अग्नि को बुझा देना किसी भी रूप में शुभ नहीं कहा जा सकता
दीप प्रज्ज्वलन के साथ दान का महत्व
हिंदू धर्म में दीप प्रज्ज्वलन के साथ भी महत्वपूर्ण व मोक्षकारी माना गया है. धन तेरस के अलावा भविष्यपुराण में सक्रांति, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, वैधृति, व्यतिपातयोग, उत्तरायण, दक्षिणायन, विषुव, एकादशी, शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी, तिथिक्षय, सप्तमी तथा अष्टमी को स्नान कर दीपदान करना शुभ बताया गया है