पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म करना शुभ माना जाता है पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितृ संतुष्ट होते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक चलने वाले पितृपक्ष क् दौरान पितरों का श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। कई बार किसी कारणवश परिवार के लोग श्राद्ध नहीं कर पाते हैं। अगर ऐसी स्थिति बनती है, तो कैसे पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं जानिए।
पितरों का श्राद्ध करते समय ब्राह्मण भोज के साथ दान देने का विधान है। इसके साथ ही परिवार सहित अपने करीबियों को बुलाकर भोज कराया जाता है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति का स्थिति ऐसी नहीं है कि वह ठीक ढंग से श्राद्ध कर पाएं, तो ऐसे में पद्म पुराण में बताया गया कि आखिर कैसे करना चाहिए पितरों का श्राद्ध।
पद्मपुराण के एक श्लोक में लिखा है - ‘तस्माच्छ्राद्धं नरो भक्त्या शाकैरपि यथाविधि'
इस श्लोक का मतलह है कि व्यक्ति पितरों का श्राद्ध शाक सब्जी से भी कर सकता है।
अगर आप बड़ा भोज करने के लिए सामर्थ्य नहीं है, तो पितरों को आशीर्वाद पाने के लिए शाक सब्जी से श्राद्ध कर दें। ऐसा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होती है।
शाक का भी सामर्थ्य न हो, तो
अगर आप शाक सब्जी से भी श्राद्ध करने में असमर्थ है, तो इस बारे में विष्णु पुराण में एक श्लोक बताया गया है।
शाक सब्जी के अभाव होने पर दक्षिण की ओर मुख करके आकाश की ओर दोनों भुजाओं को उठा दें और इस प्रार्थना करते हुए बोले
"न मे·स्ति वित्तं धनं च नान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्न्तो·स्मि।
तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य॥"
हे पितृगण.. मेरे पास श्राद्ध करने के लिए अपयुक्त धन-धान्य आदि नहीं है। हां मेरे पास आपके लिए श्रद्धा और भक्त है। मैं इन्हीं के द्वारा आपको तृप्त करना चाहूं। आप तृप्त हो।