काबुल के एक मदरसे में हुए आत्मघाती हमले में तालिबान का टॉप कमांडर रहीमुल्ला हक्कानी मारा गया है। रहीमुल्ला तालिबान के आतंकी विचारधारा का कट्टर समर्थक होने के साथ इस्लामी विद्वान भी था। इस हमले की जिम्मेदारी अभी तक किसी भी संगठन ने नहीं ली है। हालांकि, तालिबान सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे रेजिस्टेंस फोर्स या इस्लामिक स्टेट का हाथ हो सकता है। तालिबान की स्पेशल पुलिस ने मामले की जांच भी शुरू कर दी है। रहीमुल्ला हक्कानी को अफगानिस्तान के वर्तमान गृहमंत्री और हक्कानी नेटवर्क के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी का वैचारिक गुरु माना जाता है। रहीमुल्ला को सोशल मीडिया पर तालिबान का चेहरा भी माना जाता था। एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस आतंकी के लाखों फॉलोअर्स हैं।

रहीमुल्ला पर पहले भी हो चुके हैं हमले

रहीमुल्ला हक्कानी पाकिस्तान की सीमा से लगे नंगरहार प्रांत के पचिर अव आगम जिले का एक अफगान नागरिक था। हदीस साहित्य के विद्वान कहे जाने वाले हक्कानी ने स्वाबी और अकोरा खट्टक के देवबंदी मदरसों में अपनी धार्मिक शिक्षा प्राप्त की। रहीमुल्ला हक्कानी को मारने के लिए यह तीसरा हमला था। इससे पहले अक्टूबर 2020 में भी रहीमुल्ला को निशाना बनाया गया था, जिसमें वह बाल-बाल बच गया। 2013 में पेशावर के रिंग रोड पर उसके काफिले पर बंदूकधारियों ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। उस समय पाकिस्तान पुलिस और सेना के तत्काल जवाबी कार्रवाई से हमलावर भाग गए और रहीमुल्ला की जान बच गई थी।

रहीमुल्ला ने पाकिस्तान में खोला था मदरसा

शेख रहीमुल्ला हक्कानी नंगरहार प्रांत में तालिबान सैन्य आयोग का सदस्य भी रह चुका है। इसे मुठभेड़ के दौरान अमेरिकी सेना ने पकड़ा था, जिसके बाद इसे अफगानिस्तान की बगराम जेल में कई साल तक कैद करके रखा गया। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के पहले वह नौ साल तक पाकिस्तान में रहा। इसने पाकिस्तान के पेशावर में स्थित दीर कॉलोनी में मदरसा जुबैरी की भी स्थापना की। इस मदरसे में अफगान नागरिक और तालिबान लड़ाके धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसे पेशावर में तालिबान का एक प्रमुख ठिकाना भी माना जाता है। इस मदरसे के जरिए पूरे पाकिस्तान और विदेशों से तालिबान के लिए चंदा वसूला जाता है। इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भी मदद करती है।

आईएसआईएस के खिलाफ काफी मुखर था रहीमुल्ला

हक्कानी सलाफी और इस्लामिक स्टेट से संबद्ध विचारधारा के खिलाफ काफी मुखर रहा। माना जाता है कि इसी कारण वह अपने विरोधियों के निशाने पर आ गया। शेख रहीमुल्लाह हक्कानी ने मदरसे की आड़ में अपना फेसबुक और यूट्यूब चैनल भी शुरू किया। अफगान मौलवी को अफगानिस्तान और पाकिस्तान में लोकप्रियता हासिल है। फ़ेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल में हदीस साहित्य और देवबंदी और हनफ़ी विचारधारा से जुड़े धार्मिक मुद्दों पर बोलने वाले अफगान मौलवी के कई वीडियो हैं।

तालिबान के लिए कितना बड़ा झटका

शेख रहीमुल्ला हक्कानी की हत्या हक्कानी नेटवर्क के लिए सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है। रहीमुल्ला हक्कानी नेटवर्क का वैचारिक चेहरा था। वह अफगानिस्तान समेत पूरे अरब मुल्कों में हक्कानी नेटवर्क का प्रतिनिधित्व करता था। ऐसे में सिराजुद्दीन हक्कानी के गृहमंत्री रहते राजधानी काबुल में हुई इस हत्या ने तालिबान की इस्लामिक अमीरात सरकार को हिला दिया है। यह हमला बताता है कि काबुल में भी तालिबान की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। तालिबान इन दिनों अपनी सरकार को मान्यता दिलवाने के प्रयास में जुटा है। जिसमें रहीमुल्ला की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही थी। दूसरा, तालिबान को विदेशों और पाकिस्तान से मिलने वाली फंडिंग पर भी इस आतंकी की मौत का असर पड़ सकता है।

अधिक जानकारी के लिए मेगा डेली न्यूज़ को फॉलो करे 

Trending Articles