World

ताइवान और तिब्‍बत पर चीन की वो नीति जिसे न भारत मान रहा, न अमेरिका, जानिए कैसे ड्रैगन की दादागिरी है खतरे में!

Published On August 01, 2022 07:07 PM IST
Published By : Mega Daily News

अमेरिकी कांग्रेस की स्‍पीकर नैन्‍सी पेलोसी कब ताइवान की यात्रा पर जाएंगी, वो जाएंगी भी या नहीं, इस बात को लेकर कई तरह की चर्चाएं इस समय हो रही हैं। चीन का गुस्‍सा उस दिन से ही भड़का है जब से पेलोसी ने अपनी ताइवान यात्रा का ऐलान किया है। अमेरिका और चीन के बीच ताइवान अब टेंशन की नई वजह बन रहा है। 28 जुलाई को जब चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने अमेरिकी समकक्ष जो बाइडेन से फोन पर बात की तो उन्‍होंने दो टूक कह दिया, 'जो कोई भी आग से खेलने की कोशिश करेगा, वो जलकर खाक हो जाएगा।' जिनपिंग ने ये जवाब ताइवान के मुद्दे पर दिया था। ताइवान, चीन की उस 'वन चाइना पॉलिसी' का हिस्‍सा है जिसकी वजह से अमेरिका ही नहीं भारत पर भी मुसीबत आती रहती है। जानिए क्‍या है ये पॉलिसी और कैसे अब अमेरिका के अलावा भारत ने इसे चुनौती दे रहा है।

GOOGLEADBLOCK

क्‍या है वन चाइना पॉलिसी

'वन चाइना पॉलिसी' दरअसल चीन की उस राजनयिक स्थिति को मान्‍यता देती है जिसके तहत सिर्फ एक चीनी सरकार का शासन मान्‍य है। इस पॉलिसी के तहत ही अमेरिका ने ताइवान नहीं बल्कि चीन के साथ अपने संबंधों को औपचारिक मान्‍यता दी हुई है। वर्ष 1949 में में जब चीन का सिविल वॉर खत्‍म हुआ तब यह पॉलिसी अस्तित्‍व में आई थी। हारे हुए देश के लोगों को क्‍यूओमिनटैंग कहा गया और ये ताइवान चले गए।

GOOGLEADBLOCK

यहां पर इन्‍होंने अपनी सरकार बना ली जबकि जीती हुई कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी चीन पर शासन कर रही थी। दोनों ही पक्षों का कहना था कि वे चीन का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। तब से ही चीन की सत्‍ताधारी कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी ने ताइवान को धमकी दी हुई है कि अगर उन्‍होंने औपचारिक तौर पर खुद को एक आजाद देश घोषित किया तो फिर चीन को अपनी सेनाओं का प्रयोग करना पड़ेगा। चीन, ताइवान को अपना हिस्‍सा मानता है।

चाहे भारत हो या फिर अमेरिका, इस पॉलिसी के बिना चीन के साथ रिश्‍ते कभी आकार नहीं ले सकते हैं। चीन इस नीति के तहत ताइवान के अलावा हांगकॉन्‍ग, तिब्‍बत और शिनजियांग को अपना हिस्‍सा घोषित करता है। साथ ही उसे इन जगहों से जुड़े किसी भी मसले पर किसी भी देश का हस्‍तक्षेप बर्दाशत नहीं होता है। अमेरिका-चीन या भारत-चीन, इस नीति के तहत ताइवान और तिब्‍बत पर जिक्र करना किसी भी देश के लिए मुसीबत बन सकता है। ये अलग बात है कि ताइवान, खुद को आजाद देश बताती है। इसके बाद भी चीन के साथ संबंध रखने वाले हर देश को ताइवान से कन्‍नी काटनी पड़ती है।

अमेरिका ने पास किया अहम एक्‍ट

वन चाइना पॉलिसी चीन की कई देशों के साथ के रिश्‍तों की आधारशिला है। इसके अलावा चीन इसी पॉलिसी के तहत अपनी नीतियां बनाता है। ताइवान की सरकार भले ही ताइवान को आजाद देश मानती हो लेकिन इसे आज भी आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना ही कहा जाता है। जिस किसी भी देश को चीन के साथ रिश्‍ते रखने हैं, वह ताइवान के साथ रिश्‍ते नहीं रख सकता है। इस वजह से ही ताइवान, अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय से कटा हुआ है।

चीन के साथ अमेरिका ने वर्ष 1979 में पूर्व राष्‍ट्रपति जिमी कार्टर के समय में औपचारिक तौर पर राजनयिक रिश्‍तों की शुरुआत की थी। इसका नतीजा हुआ कि अमेरिका को ताइवान के साथ अपने रिश्‍ते तोड़ने पड़े और ताइवान की राजधानी ताइपे में दूतावास को बंद करना पड़ गया। लेकिन इससे पहले कार्टर ने ताइवान के राष्‍ट्रपति से फोन पर बात की थी।

अमेरिका ने ताइवान रिलेशंस एक्‍ट पास किया, जो ताइवान को समर्थन देने की गारंटी था। यह एक्‍ट यह भी कहता था कि अमेरिका को हर हाल में ताइवान की मदद करनी चाहिए ताकि वह अपनी सुरक्षा कर सके। इसी वजह से अमेरिका आज भी ताइवान को अपने हथियारों की बिक्री करता है। ताइवान में अमेरिका का आज एक अमेरिकन इंस्‍टीट्यूट है और अनाधिकारिक तौर पर अमेरिका की मौजूदगी भी है। यहीं से अमेरिका अपनी सभी राजनयिक गतिविधियों को भी चलाता है।

भारत से भी मिल रही चुनौती

साल 2016 में जब पूर्व राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने चुनाव जीता तो उन्‍होंने फिर से ताइवान के साथ ही चीन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था। ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद ताइवान की राष्‍ट्रपति साई इंग-वेन से फोन पर बात की। कार्टर के बाद ट्रंप इतने सालों में पहले अमेरिकी राष्‍ट्रपति थे जिन्‍होंने ताइवान को कॉल किया था। ट्रंप ने जो किया उसके बाद चीन का गुस्‍सा सांतवें आसमान पर पहुंच गया था। इसके बाद से ही गाहे-बगाहे वन चाइना पॉलिसी को चैलेंज किया जाने लगा।

अमेरिका से अलग भारत ने भी पिछले दो सालों में इस नीति को लेकर अपने रुख में बदलाव किया है। अमेरिका जहां ताइवान को हथियार बेचने लगा है तो वहीं भारत ने भी तिब्‍बत के निर्वासित नेता और धर्मगुरु दलाई लामा को मान्‍यता देनी शुरू की है। हाल ही में दलाई लामा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन्‍मदिन की बधाई दी तो वहीं लद्दाख में उनकी यात्रा का प्रबंध किया।

चीन को निश्चित तौर पर इस नीति से फायदा हुआ है। ताइवान को आज भी स्‍वतंत्र देश का दर्जा नहीं मिला हुआ है और यहां तक यूनाइटेड नेशंस (UN) ने भी उसे एक देश मानने से इंकार कर दिया है। ताइवान को किसी भी अंतराष्‍ट्रीय इवेंट जैसे ओलंपिक में हिस्‍सा लेने के लिए भी कई मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। लेकिन अलग-थलग होने के बावजूद ताइवान पूरी तरह से अंतराष्‍ट्रीय परिदृश्‍य से गायब नहीं है।

ताइवान अमेरिका पॉलिसी राष्‍ट्रपति चाइना हिस्‍सा रिश्‍ते ट्रंप अमेरिकी यात्रा उन्‍होंने अलावा राजनयिक मान्‍यता chinas policy taiwan tibet neither india america following know dragons grandeur danger
Related Articles