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शहरी हिस्से में गरीबों के लिए बेरोजगारी सबसे बड़ा संकट, कोरोना महामारी में 76% के पास नहीं था काम

Published On April 20, 2022 01:43 PM IST
Published By : Mega Daily News

पिछले 2 सालों से देश में कोरोना काल चल रहा है और इस दौरान बीच में कई बार लॉकडाउन भी लगाया गया। कोरोना और लॉकडाउन के कारण लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए और उनको रोजी-रोटी की संकट का सामना करना पड़ा। दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों वाले इलाकों में लोकनीति-सीएसडीएस ने कोरोना के दौरान बेरोजगारी को लेकर एक सर्वे किया जिसमें कुछ चौंकाने वाली जानकारी सामने आई।

लोकनीति-सीएसडीएस के अध्ययन में हिस्सा लेने वालों में पता चला कि 60लोग कहीं न कहीं कार्यरत हैं। इसमें 33किसी न किसी तरह की नौकरी में लगे हुए थे और 27छोटे व्यवसाय चला रहे हैं। करीब 17या तो किसी काम में नहीं लगे थे या नौकरी की तलाश में थे। 19महिलाओं ने बताया कि वे एक गृहिणी थीं और 4अपनी पढ़ाई कर रही थीं। 41महिलाएं आर्थिक रूप से अपने परिवार का सहयोग कर रही थीं, जिनमें से 22नौकरी कर रही थीं और 19ने एक छोटा व्यवसाय खोला रखा था। पुरुषों में 77से अधिक कार्यरत थे जिनमें से 43नौकरी कर रहे थे और 34एक छोटा व्यवसाय चलाते थे।

सर्वे में हिस्सा लेने वाले एक-चौथाई करीब 76ने बताया कि कोरोना के दौरान उनकी नौकरी चली गई जबकि 24लोगों ने किसी दूसरे काम को शुरू करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। सर्वे में 63लोगों ने बताया कि कोरोना के दौरान उन्हें जीवन यापन करने के लिए किसी अन्य से पैसे उधार लेने पड़े।

सर्वे में 15ने बताया कि महामारी के दौरान उन्हें अपने गाँव लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा और 7को अपना घर खाली करना पड़ा। घरों के खाली होने का यह कम आंकड़ा इसलिए हो सकता है क्योंकि सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोग दिल्ली में नए प्रवासी नहीं हैं क्योंकि उनमें से 29का दिल्ली में ही जन्म हुआ और यहीं पले बढ़े। जबकि 57ने बताया कि वो 10 सालों से अधिक समय से दिल्ली में रह रहे हैं। सर्वे में पता चला कि महामारी के दौरान 8को वित्तीय मदद और 4को सरकार द्वारा नौकरी से संबंधित मदद मिली थी।

सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि अगर उन्हें इतना ही पैसा मिले जितना दिल्ली में मिलता है तो क्या वे अपने गांव में रहेंगे? इस सवाल के जवाब में 42ने बताया कि वो अपने गांव या कस्बे में बसने के इच्छुक हैं जबकि 55ने कहा कि वे दिल्ली में रहना जारी रखेंगे।

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