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तलाक ए हसन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते सुनवाई करेगा

Published On August 04, 2022 01:39 AM IST
Published By : Mega Daily News

मुस्लिम समुदाय में मर्दो को तलाक का एकाधिकार देने वाले तलाक ए हसन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते सुनवाई कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट में दो महिलाओं- मुंबई की रहने वाली नाजरीन निशा और गाजियाबाद की रहने वाली पत्रकार बेनजीर हिना ने तलाक ए हसन और इस जैसी दूसरी व्यवस्थाओं को रद्द करने को लेकर याचिका दायर की है. आज बीजेपी नेता और वरिष्ठ वकील गौरव भाटिया ने चीफ जस्टिस एन वी रमना के सामने ये मामला रखा और जल्द सुनवाई की मांग की. चीफ जस्टिस ने अगले हफ्ते सुनवाई का भरोसा दिया.

'मोबाइल पर मैसेज के जरिए मिला तलाक का नोटिस'

नाजरीन का कहना है कि उसकी शादी नवंबर 2019 में नासिक के रहने वाले मोहम्मद अकरम से हुई थी. शादी के वक्त ससुराल वालों की मांग के चलते घरवालों ने अपनी हैसियत से बढ़कर दहेज दिया. इसके बावजूद ससुराल वाले सन्तुष्ट नहीं हुए और शादी के बाद से ही दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा. नाजरीन का कहना है कि छोटी-छोटी बातों के लिए उसके साथ मारपीट की जाती. इसके बाद वो टीबी की मरीज हो गई तो पति उसे मायके छोड़ आया. मायके में इलाज होने के बाद वो स्वस्थ हो गई, पर पति उसे वापस नहीं ले गया. इसके बाद 4 जुलाई को पति ने एकाएक मैसेज के जरिए तलाक के दो नोटिस भेज दिए गए.

स्पीड पोस्ट, मेल के जरिए पति ने भेजा तलाक

इससे पहले गाजियाबाद की रहने वाली बेनजीर हिना ने 2 मई को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. आठ महीने के बच्चे की मां बेनजीर ने याचिका में तलाक ए हसन और एकतरफा तलाक के सभी तरीकों को गैर कानूनी घोषित करने की मांग की थी. बेनजीर ने जब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, तब उन्हें तलाक का पहला नोटिस ही मिला था. इसके बाद उनकी ओर से कई बार मामले में जल्द सुनवाई की मांग की गई. लेकिन उनका मामला सुनवाई पर नहीं लग पाया. बेनजीर को 23 अप्रैल और 23 मई को स्पीड पोस्ट के जरिए और 23 को मेल पर तलाक के तीनों नोटिस मिल चुके हैं.

तलाक-ए-हसन क्या है?

22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तलाक ए बिद्दत यानी एक साथ तीन बार बोलकर शादी खत्म करने को असंवैधानिक करार दिया था. इसके बाद सरकार ने इसे लेकर कानून भी बनाया. लेकिन अभी भी तलाक ए हसन और तलाक ए अहसन जैसी परंपरा प्रचलित हैं. तलाक ए हसन में पति एक-एक महीने के अंतराल पर तीन बार मौखिक तौर पर या लिखित रूप में तलाक बोलकर निकाह रद्द कर सकता है.

'तलाक-ए-हसन मूल अधिकारों के खिलाफ'

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि तलाक ए हसन संविधान के अनुच्छेद 14,15, 21 और 25 के खिलाफ है. मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 में एकतरफा तलाक देने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को है. महिलाएं पुरुषों को इस तरह से तलाक नहीं दे सकती. कई इस्लामिक देश तलाक ए हसन जैसी परंपराओं पर प्रतिबंध लगा चुके हैं, लेकिन भारत में इसके जरिए तलाक का सिलसिला बदस्तूर जारी है. इसका सबसे बुरा असर वंचित तबके की उन महिलाओं और उनके बच्चों पर पड़ रहा है, जिन्हें अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी नहीं होती और जो कोर्ट का रुख भी नहीं कर पाती.

याचिकाकर्ताओं की मांग है कि तलाक ए हसन जैसी परंपराओं को खत्म करके सरकार सभी धर्मों और महिलाओं और पुरुषों के लिए एक समान तलाक कानून बनाए.

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