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रेवड़ी कल्चर पर कोर्ट ने कहा कि हम यह तय करेंगे कि चुनावी घोषणा में फ्री स्कीम्स क्या है

Published On August 18, 2022 01:09 AM IST
Published By : Mega Daily News

रेवड़ी कल्चर के मुद्दे पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सभी पक्षों का तर्क सुना और उनसे सुझाव मांगे हैं. अदालत ने शनिवार तक इस मामले में सभी पक्षों को रिपोर्ट सौंपने को कहा है फिर कोर्ट इस मामले पर सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा? 

हम जनता के फायदे को कैसे रोक सकते हैं?

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या हम किसी पॉलिटिकल पार्टी को किसानों को खाद देने से रोक सकते हैं? सबको शिक्षा और स्वास्थ्य देने पर अमल करना सार्वजनिक धन का दुरुपयोग नहीं है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को लोगों से वादा करने से नहीं रोका जा सकता. सवाल इस बात का है कि सरकारी धन का किस तरह से इस्तेमाल किया जाए.

AAP ने किया था एक्सपर्ट कमेटी का विरोध

बता दें कि आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर इन मुद्दों पर विचार के लिए विशेषज्ञ कमिटी के गठन की मांग का विरोध किया था. हलफनामे में कहा गया था कि चुनावी भाषणों पर कार्यकारी या न्यायिक रूप से प्रतिबंध लगाना संविधान के अनुच्छेद 19 1A के तहत फ्रीडम ऑफ स्पीच की गारंटी के खिलाफ है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार देने का वादा करना 'गंभीर मुद्दा' है. इसके बजाय बुनियादी ढांचे पर राशि खर्च की जानी चाहिए.

फ्री स्कीम्स का बेस्ट उदाहरण है मनरेगा- SC

आज की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने फ्री स्कीम्स को मनरेगा का सबसे बेहतरीन उदाहरण बताया. उन्होंने कहा कि इस स्कीम से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है, मगर यह वोटर को शायद ही प्रभावित करता है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि मुफ्त में वाहन देने की घोषणा कल्याणकारी उपायों के रूप में देखा जा सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि शिक्षा के लिए मुफ्त कोचिंग फ्री स्कीम्स है?

'क्या ही रेवड़ी कल्चर, तय करने की जरूरत'

11 अगस्त को सुनवाई से पहले चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल किया था. आयोग ने कोर्ट में कहा है कि फ्री का सामान या फिर अवैध रूप से फ्री का सामान की कोई तय परिभाषा या पहचान नहीं है. आयोग ने 12 पन्नों के अपने हलफनामे में कहा कि देश में समय और स्थिति के अनुसार फ्री सामानों की परिभाषा बदल जाती है. ऐसे में विशेषज्ञ पैनल से हमें बाहर रखा जाए. हम एक संवैधानिक संस्था हैं और पैनल में हमारे रहने से फैसले को लेकर दबाव बनेगा. कोर्ट ही इस पर दिशा-निर्देश जारी कर दें.

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