अरुणाचल प्रदेश में तवांग सेक्टर में एलएसी के साथ लगे इलाके में अलग-अलग परसेप्शन वाले क्षेत्र हैं, जहां चीन और भारत अपने-अपने दावे की सीमा तक क्षेत्र में गश्त करते हैं. यह चलन साल 2006 से है. 9 दिसंबर 2022 की रात तवांग सेक्टर में चीनी सैनिक एलएसी के करीब पहुंच गए, जिसके बाद भारतीय सैनिक भी आगे बढ़े. इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों में भिड़ंत हो गई. भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया.

आमने-सामने की इस लड़ाई में दोनों पक्षों के सैनिकों को चोटें आई हैं. हालांकि, तुरंत दोनों देशों के सैनिकों को पीछे हटाया गया. इसके बाद दोनों देशों की सेना के कमांडर्स ने शांति बहाल करने के लिए फ्लैग मीटिंग में इस मुद्दे पर चर्चा की. 15 जून, 2020 की घटना के बाद यह अपनी तरह की पहली घटना है. 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में पीएलए सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे.

300 चीनी सैनिक आए

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, तवांग में आमने-सामने के क्षेत्र में भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को करारा जवाब दिया. घायल चीनी सैनिकों की संख्या भारतीय सैनिकों की तुलना में अधिक है. जानकारी के मुताबिक चीन के लगभग 300 सैनिक पूरी तरह से तैयार होकर आए थे.

चीनी सैनिकों को भारत की तरफ से बराबर की टक्कर मिलने की उम्मीद नहीं थी लेकिन ने इस मुकाबले में जिनका भारतीय सैनिकों ने न सिर्फ डटकर मुकाबला किया बल्कि उन्हें पीछे ढकेलने में भी कामयाबी हासिल की. इस झड़प में चीनी सैनिकों को भारी नुकसान पहुंचा है.

2021 में हुई थी ऐसी घटना

यह पहली बार नहीं है जब अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच आमना-सामना हुआ हो. इस क्षेत्र में गश्त करते समय भारतीय और चीनी सैनिकों का अक्सर आमना-सामना होता है. अक्टूबर 2021 में, इसी तरह की एक घटना हुई थी जब एक बड़े गश्ती दल के कुछ चीनी सैनिकों को भारतीय सेना द्वारा कुछ घंटों के लिए हिरासत में लिया गया था, वो यांग्त्से के पास भिड़ गए थे.

बता दें कि भारत-चीन सीमा पर प्रक्रिया पूरी तरह साफ होती है कि अगर दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे के सामने आते हैं तो वो हथियार का इस्तेमाल नहीं कर सकते. वो हाथापाई नहीं कर सकते. लेकिन इसके बाद भी अगर लड़ाई हुई है तो आने वाले दिनों में इसका असर कई तरह से देखने को मिलेगा.

सेना की तरफ से बताया गया है कि इस घटना के तुरंत बाद दोनों तरफ के कमांडर्स ने मीटिंग की और शांत कराया. जहां पर ये घटना हुई है वहां पर पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं. लेकिन अभी कुछ समय से इस इलाके में काफी शांति थी. 

आम तौर पर ऐसी घटनाएं बर्फ के पिघलने के बाद देखने को मिलती हैं, यानी जून, जुलाई और अगस्त के महीने में. लेकिन दिसंबर में ऐसी घटना का होना सोचने पर मजबूर करता है. आखिर चीन क्या सोच रहा है. उसकी क्या प्लानिंग है, क्या किसी साजिश का हिस्सा है? ये सभी सवाल वर्तमान की घटना को लेकर उठने लगे हैं. हालांकि, अभी देखना होगा कि विदेश मंत्रालय की तरह से क्या बयान आता है.

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