भारत में मंकीपॉक्स का पहला मामला गुरुवार को दर्ज हो गया है. मंकीपॉक्स आने के बाद से हर किसी के मन में यह डर है, कहीं यह भी कोरोना वायरस की तरह फैल तो नहीं जाएगा.

भारत में मंकीपॉक्स का पहला मामला गुरुवार को दर्ज हो गया है. यह मामला केरल से दर्ज हुआ है. 35 वर्ष के एक व्यक्ति में मंकीपॉक्स की पुष्टि हुई है. केरल की राज्य सरकार के मुताबिक यह व्यक्ति हाल ही में विदेश यात्रा से लौटा है. इसके बाद से केंद्र सरकार अलर्ट हो गई है. पिछले 50 से 60 वर्षों में यह मंकीपॉक्स का सबसे बड़ा आउटब्रेक माना जा रहा है. मंकीपॉक्स आने के बाद से हर किसी के मन में यह डर है, कहीं यह भी कोरोना वायरस की तरह फैल तो नहीं जाएगा.

इस बात का खतरा सबसे ज्यादा

छोटे बच्चों और कम उम्र के युवाओं में मंकीपॉक्स के फैलने का खतरा ज्यादा है. ऐसे लोग जिन्हें कभी स्माल पॉक्स के लिए वैक्सीन लग चुकी है या फिर उन्हें जीवन में कभी स्मॉल पॉक्स हो चुका है, उन्हें मंकीपॉक्स होने का खतरा कम माना जा रहा है. हालांकि AIIMS के मेडिसन एक्सपर्ट डॉक्टर पीयूष रंजन के मुताबिक 1975 आते-आते भारत में स्मॉल पॉक्स लगभग खत्म हो चुका था. इसीलिए इस वक्त भारतीयों में पुरानी इम्यूनिटी कितनी होगी यह कहना मुश्किल है.

आंखों और मुंह पर निकलते हैं दाने

मंकीपॉक्स स्मालपॉक्स की तरह और चेचक की ही तरह की कैटेगरी की बीमारी है. इस बीमारी में तेज बुखार आ सकता है, चेहरे और हाथों पर पानी वाले दाने निकल सकते हैं. चिंता की बात यह है कि मंकीपॉक्स में दाने आंखों में और मुंह के अंदर भी निकलते हैं. आंखों में इस बीमारी की वजह से रोशनी पर भी असर पड़ सकता है.

सिर्फ इस तरीके से पा सकेगें बीमारी से निजात

हालांकि यह बीमारी कोरोना की तरह उतनी तेजी से नहीं फैलती है. यह बीमारी संक्रमित जानवर से इंसानों में फैलती है और उसके बाद संक्रमित इंसान से उसकी त्वचा के या फ्लुइड्स के संपर्क में आने से फैल सकती है. फिलहाल इस बीमारी की कोई वैक्सीन मौजूद नहीं है. लेकिन 21 दिन के आइसोलेशन से इंसान इस बीमारी से निजात पा सकता है.

शुरुआती स्तर पर रोकने की कोशिश

सरकार ने देश में 15 लैब मंकीपॉक्स की जांच के लिए तैयार कर ली हैं. हालांकि कोशिश की जा रही है कि भारत में इस बीमारी को शुरुआती स्तर पर ही रोका जा सके. कोरोना वायरस की जांच वाले आरटी पीसीआर टेस्ट से ही मंकीपॉक्स का भी पता लगाया जा सकता है.

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