पुराने वाहनों को खरीदने और बेचने को लेकर बड़ा ही खास नियम बनाया गया है। इसे आरसी ट्रांसफर कहा जाता है, इसके ट्रांसफर किए बिना आपके द्वारा खरीदी गई गाड़ी पर पूर्ण रूप से आपका हक नहीं होता है। वहीं अगर आपने कोई वाहन बेचा है और उसकी आरसी ट्रांसफर नहीं कि है तो दुर्घटना या किसी तरह की समस्‍या आने पर आप परेशानी में पड़ सकते हैं।

आधुनिक समय में कई ऐसे प्‍लेटफॉर्म उपलब्‍ध हैं, जहां पर क्रेता और विक्रेता द्वारा बिना किसी डीलर के वाहन को खरीदा और बेचा जा सकता है। आरसी को ट्रांसफर करने की महत्‍वा इस हिसाब से भी लगा सकते हैं कि अगर आपके द्वारा बेचे हुए वाहन का चालान कटता है तो उसका सारा खर्च आपको ही वहन करना पड़ सकता है।

आरसी के बिना ट्रैवल करना गैर कानूनी
मोटर वाहन का नियम बताता है कि सभी वाहन मालिकों के पास एक वैध आरसी होना अनिवार्य है। बिना आरसी के भारतीय सड़कों पर वाहन का उपयोग नहीं किया जा सकता है। आरसी ट्रांसफर की प्रक्रिया हर क्षेत्र के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) में आयोजित की जाती है। सफल पंजीकरण होने के बाद आसानी से आरसी ट्रांसफर हो जाती है।

कितने प्रकार से आरसी होती है ट्रांसफर
भारत में आरसी ट्रांसफर दो प्रकार से की जाती है। एक में ऐसे वाहन जो राज्‍य के बाहर खरीदे और बेचे जाते हैं, वहीं दूसरी प्रक्रिया ऐसे वाहनों के लिए है जो राज्‍य के अंदर खरीदे और बेचे जाते हैं। राज्‍य के बाहर बेचने वाले वाहनों के लिए अंतरराज्यीय आरसी ट्रांसफर का नियम लगता है।

अन्‍य राज्‍य में कैसे होता है ट्रांसफर
टू-व्हीलर / फोर-व्हीलर ओनरशिप ट्रांसफर के लिए दोनों राज्यों में एक मजबूत और कार्यात्मक ऑनलाइन प्रक्रिया होनी चाहिए, तभी ऑनलाइन अप्लाई किया जा सकता है। ऑफलाइन प्रक्रिया के लिए दो राज्य एवं दो आरटीओ शामिल होते हैं। वाहन पंजीकरण की लागत 600 रुपये निर्धारित किया गया है।

राज्‍य के अंदर कैसे ट्रांसफर कराएं आरसी
क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) द्वारा वाहनों का ट्रांसफर किया जाता है। ऑफलाइन माध्‍यम से कार्यालय में जाकर आप आरसी को ट्रांसफर करा सकते हैं। वहीं कुछ राज्‍यों द्वारा ऑनलाइन माध्‍यम से भी आरसी ट्रांसफर किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान आपको जरूरी दस्‍तावेजों और प्रमाणपत्रों की कॉपी फॉर्म के साथ जमा करनी होती है। जमा करने के कुछ दिन के बाद आरसी ट्रांसफर कर दिया जाता है।

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